पत्तों से महिलाएं बचा रही पर्यावरण (Women are saving the environment from leaves)



               उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा से लगे थारू जनजाति वाले गांवों की महिलाएं महुराइन प्रजाति के पेड़ों के पत्तों से दोना-पत्तल बना रही हैं। थारू महिलाओं के लिए इनका रोजगार भी यही हैं जो रेडीमेड पत्तलों, दोनों के आने से संकट में आ गया था। किन्तु अब बाजार में थर्माकोल और प्लास्टिक के कप-प्लेटों पर प्रतिबन्ध लगने के कारण पत्तों के दोनों-पत्तलों की मांग पुनः बढ़ गई हैं। खास बात यह है की इन महिलाओं के हाथों से बने दोनों-पत्तलों की बनावट व सुंदरता बाजार में रेडीमेड बिकने वाले दोनों-पत्तलों से कही गुना बेहतर हैं। इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है की यह पूर्णतः प्राकृतिक है इसलिए उपयोग के बाद यह आसानी से विघटित होकर पर्यावरण में मिल जाता हैं और पर्यावरण को हरा भरा रखता हैं। इन महिलाओं की ऐसे सराहनीय कार्य के लिए जितनी प्रशंसा की जाए कम होंगी।
              वैसे तो प्राचीन काल से ही जनजाति के लोगों का पर्यावरण के साथ गहरा सम्बन्ध रहा हैं। यह शुरू से ही अपना खाना-पीना, रहना और जीवन की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति पर निर्भर रह कर ही करते आए हैं। यह प्रकृति प्रेमी होते हैं और पर्यावरण को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं यही कारण हैं की प्रकृति भी इनका ध्यान रखती हैं और इनके लिए समृद्ध पर्यावरण बनाएं रखती हैं। आधुनिकता की होड़ में हम पर्यावरण हितैषी संसाधनों का उपयोग करना भूल से गए हैं व कृत्रिम/रासायनिक तौर से बने उत्पादों का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं जिससे की पर्यावरणीय संतुलन गड़बड़ा गया हैं जिसके गंभीर परिणाम हमें देखने को मिलते हैं। हमे पुनः पर्यावरण हितैषी संसाधनों की और लोटना होंगा। ऐसे सभी कृत्रिम व रासायनिक उत्पादों को बंद करना होगा जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं साथ ही प्राकृतिक तरीके से उत्पादन करने वालों को बढ़ावा मिले ऐसी नीति और पर्यावरण को हरा भरा रखने की योजनाएं लानी होंगी।



              Women from Tharu tribe villages bordering Nepal's border in Uttar Pradesh are making two-leaf plates from the leaves of Mahuraine species. This is also their employment for Tharu women, who were in trouble due to the arrival of both readymade leaves. However, due to the ban on thermocol and plastic cup-plates in the market, the demand for both the leaves has increased again. The special thing is that the texture and beauty of these two hands made by these women are many times better than the two ready-made ones in the market. Its most important feature is that it is completely natural, so after use it is easily decomposed and gets into the environment and keeps the environment green. The praise of these women for such commendable work will be less.
              By the way, the people of the tribe have had a deep connection with the environment since ancient times. From the beginning, they have been dependent on nature for their food and drink, living and fulfilling all the requirements of life. They are nature lovers and never harm the environment, that is why nature also takes care of them and maintains a rich environment for them. In the race for modernity, we have forgotten to use environmentally friendly resources and are using artificial / chemically made products indiscriminately, which has disturbed the environmental balance, which has serious consequences for us. We will again have to explore more environmentally friendly resources. All such artificial and chemical products have to be discontinued which are harmful to the environment, as well as the policy to promote those who produce in a natural way and plans to keep the environment green.

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