जैव विविधता- हमारे समाधान प्रकृति में है


1. परिचय- 
                              
                               जैव विविधता जीवन और विविधता के योग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी) के अनुसार जैवविविधता विशिष्टतया अनुवांशिक प्रजाति तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है। "जैव विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे हमारी जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।¹

2. जैव विविधता की परिभाषाएं-

1. “एक शब्दावली जो एक पारिस्थितिक तन्त्र के जीव-जन्तुओं एवं पादपों की विविधता को वर्णित करती है।” – जॉन स्माल एवं माइकल विदरिक

2. “जैव विविधता, जीन्स, जातियों, जाति समूहों एवं पारिस्थितिक तन्त्र का संगठन है जो बायोम का निर्माण करती है।” – हैगेट, लिण्डले, गेविन और रिचर्डसन

3. ”जैव विविधता प्रकृति का वह भाग है जिसमें जातियों की आनुवंशिक भिन्नता तथा विभिन्न स्तरों पर पादप एवं जीव-जन्तुओं की विविधता एवं समृद्धता सम्मिलित है।” -भरूचा

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है जैव विविधता से आशय जीवधारियों (पादप एवं जीवों) की विविधता से है।

3. विश्व की जैव-विविधता-

                                          वैज्ञानिकों के द्वारा किये गये विभिन्न अध्ययनों के आधार पर अनुमान लगाया गया कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीव-जन्तुओं एवं पौधों को लगभग 5 से 10 मिलियन प्रजातियाँ उपस्थित हैं परन्तु इनमें से लगभग 2 मिलियन प्रजातियों की ही पहचान की जा सकी है तथा उनका अध्ययन किया गया है। इनकी समूहवार संख्या इस प्रकार हैं-

(I) हरे पौधों एवं कवकों की प्रजातियों की संख्या 3,00000
(ii) कीटों की प्रजातियों की संख्या 8,00000
(iii) उभयचर जीवों की प्रजातियों की संख्या 23,000
(iv) रेप्टाइल्स की प्रजातियों की संख्या 6,300
(v) पक्षी वर्ग के जीवों की प्रजातियों की संख्या 8,700
(vi) स्तनधारी जीवों की प्रजातियों की संख्या 4,100
(vii) सूक्ष्मजीवों की प्रजातियों की संख्या 2,000 से अधिक।



4. भारतवर्ष की जैवविविधता-

                                             भारतवर्ष पादपजात (Flora) एवं प्राणिजात (Fauna) से भरपूर है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के जीवधारियों की संख्या इस प्रकार है

पादप जैवविविधता-

कवक               23,000 प्रजातियाँ
आवृतबीजी           15,000 प्रजातियाँ
ब्रायोफाइट्स           2,564 प्रजातियाँ
टेरिडोफाइट्स          1,022 प्रजातियाँ
जीवाणु              850 प्रजातियाँ
अनावृतबीजी          64 प्रजातियाँ

जन्तु जैव-विविधता-

आर्थोपोड़।                   57,525 प्रजातियाँ
निम्न श्रेणी के जन्तु          9,214 प्रजातियाँ
मोलस्क जीव                5,042 प्रजातियाँ
मछलियां                   2,546 प्रजातियाँ
पक्षी                       1,228 प्रजातियाँ
इकाइनोडर्मेट्स               765 प्रजातियाँ
सरीसृप जीव                428 प्रजातियाँ
जलस्थली जीव              204 प्रजातियाँ 
स्तनधारी                   372 प्रजातियाँ
प्रोटोकार्डेटा                  116 प्रजातियाँ
हेमीकार्डेटा                  12 प्रजातियाँ 

उपरोक्त डाटा से स्पष्ट है कि भारत में कवक तथा कीट समुदाय के जीव प्रभावी हैं।
यहाँ पर पौधों एवं जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनकी खोज सम्भावित हैं।

5. जैव-विविधता के प्रकार-

         (1) आनुवांशिक विविधता- 
                                              एक ही प्रजाति के जीवों के जीनों में होने वाली विविधताओं को आनुवंशिक विविधता या एक ही प्रजाति के अन्दर होने वाली विविधता कहते हैं। ऐसी विविधताओं के उनका कारण एक ही प्रजाति की कई समष्टियाँ बन जाती हैं। इस प्रकार आनुवंशिक विविधता के कारण ही प्रजाति की जातियों की समष्टियों में विविधता आ जाती है।

(2) प्रजाति विविधता-
                                इस प्रकार की विविधता दो प्रजातियों के मध्य होती है। इसके अन्तर्गत एक विशेष प्रक्षेत्र के अन्दर उपस्थित प्रजातियों के मध्य उपस्थित विविधताएँ आती हैं। ऐसी विविधताओं का समापन उस क्षेत्र में उपस्थित विभिन्न प्रजातियों की संख्या के आधार पर किया जाता है।

(3) पारिस्थितिक तंत्रीय विविधता- 
                                       एक पारिस्थितिक तंत्र में कई भूरूप हो सकते हैं तथा प्रत्येक भू-भाग में विभिन्न एवं विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ एवं जीव-जन्तु पाये जाते हैं। इस प्रकार किसी पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों की विविधता को ही पारिस्थितिक तंत्रीय विविधता कहते हैं। पारिस्थितिक विविधता के प्रकार-

(i) अल्फा विविधता- इसे समुदाय की आन्तरिक विविधता भी कहते हैं। यह विविधता एक समान आवास में पाये जाने वाले एक समुदाय के जीवों में पाई जाने वाली स्थानीय विविधता होती है।

(ii) बीटा विविधता- ऐसी विविधता आवास में परिवर्तनों या समुदाय में पारिस्थितिक प्रवणताओं, जैसे- ऊचाई, अक्षांश, आर्द्रता प्रवणताओं में अन्तर आने के कारण उत्पन्न होती है।

(iii) गामा विविधता- इसे क्षेत्रीय विविधता भी कहते है। इस प्रकार की विविधता एक भू-भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी प्रकार के आवास स्थानों में जातियों की प्रचुरता प्रदर्शित करती है।²

6. जैव विविधता के तप्त स्थल-

                                           विश्व के सर्वाधिक जैव विविधता के संवेदनशील क्षेत्रों को जैव विविधता तप्त स्थल कहा जाता है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जैव विविधता अत्यधिक है किन्तु इनमें जैव विविधता निरन्तर घट रही है, अतः इन स्थलों पर ध्यान देना और संरक्षित करना आवश्यक है । इस प्रकार के स्थलों के चयन के दो प्रमुख आधार हैं, प्रथम- जहाँ जैव विविधता अधिक हो और दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हों और द्वितीय-इन प्रजातियों पर विलुप्त होने का संकट हो। 

विश्व के प्रमुख जैव विविधता के तप्त स्थल हैं-

(i) भू-मध्य सागरीय बेसिन
(ii) केरीबियन द्वीप समूह
(iii) मेडागास्कर क्षेत्र
(iv) सुण्डा लैण्ड (इण्डोनेशिया)

वर्तमान में भारत में 4 तप्त स्थल क्षेत्र है-

1. पश्चिमी घाट
2 .पूर्वी हिमालय
3 .इण्डोवर्मा
4. सुण्डालैण्ड

इन प्रमुख क्षेत्रों के अतिरिक्त प्रत्येक देश/प्रदेश में इस प्रकार के स्थल हो सकते हैं, उन्हें चिन्हित करना और इनके संरक्षण के उपाय करना आवश्यक है।

7. जैवविविधता, विज्ञान और चिकित्सा- 

                                                              दवाओं का एक महत्वपूर्ण अनुपात, प्रत्यक्ष या परोक्ष, जैविक स्रोतों से व्युत्पन्न होता है। ज्यादातर मामलों में 40 % से अधिक दवाईयां जो की अमरीका मैं  बनाई जाती है वह पौधे जानवरों और सूक्ष्मजीवों से बनायी जाती है। इसके अलावा, पौधों की कुल विविधता का केवल एक छोटा सा अनुपात बिलकुल नई औषधियों के संभावित स्रोतों के लिए जांच के लिये लाया गया जिसको कई दवाओं से भी प्राप्त कर रहे हैं। अणुजीवों (microorganism) क्षेत्र के माध्यम से बायोनिक्स तकनीकी बहुत ही उन्नत है जो एक समृद्ध जैव विविधता के बिना संभव नहीं हो सकती।

8. कोविड-19 के उपचार में आयुर्वेदिक औषधियां लाभप्रद-
 
                                              आयुर्वेद विज्ञान जो की जैवविविधता का सबसे महत्वपूर्ण और मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी विज्ञान है। इस आयुर्वेद को भारत की महान विरासत का अग्रदूत बनना चाहिए था। किन्तु हमने ही अपनी सांस्कृतिक विरासत और महान वैज्ञानिक परम्पराओं को तिरस्कार करना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ की हम प्रकृति के साथ अपने सहज सम्बन्ध को भूलते चले गए और आयुर्वेदिक पद्धति हमसे दूर होती चली गई। कोविड-19 से बचाव में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस आयुर्वेद को अपनाने की अपील की तो हमारी आयुर्वेद की विरासत से फिर रूबरू होने  होने का अवसर मिला है। 
आज जहां सम्पूर्ण विश्व कोविड-19 महामारी से जूझ रहे है और समृद्ध देश इससे बचाव व उपचार में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विभिन्न पहलुओं को खंगाल रहे है। संभवतः आयुर्वेद में इस महामारी से जूझने की विशिष्ट क्षमता दिखाई दे रही है। किसी साइड इफेक्ट के बिना यह हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक सिद्धांतो के साथ कुछ काढ़ों तथा होम्योपैथी दवाइयां का क्वारंटीन के दौरान प्रयोग कराया। प्रयोग में देखा गया की जिन लोगों ने क्वारंटीन की अवधि में कम से कम सात दिन की आयुर्वेद या होम्योपैथिक दवा ली थी उन सभी रोगियों की सेहत में सुधार हुआ। व बाद में वे कोरोना मुक्त भी हुए।³
कोविड-19 के रोगियों को मुख्य रूप से त्रिकटु चूर्ण का काढ़ा सेवन कराया जाता है। जिसमें-

1. काली मिर्च (पाइपर नाइग्रम) 
2. पिप्पली (पाइपर लोंगम)
3. सौंठ (जिंजिबर ऑफ़िसिनेल)
सम्मिलित है जो जैवविविधता के महत्वपूर्ण औषधीय पौधे है।

9. भारत में जैव विविधता का संरक्षण-

                                                  भारत दुनिया के 17 विशाल विविधतापूर्ण देशों में से एक है। लेकिन कई पौधों और जानवरों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। गंभीर खतरे और अन्य विलुप्तप्राय पौधों तथा पशु प्रजातियों की रक्षा करने के लिए भारत सरकार ने कई कदम, कानून और नीतिगत पहलुओं को अपनाया है।
बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर)- भारत सरकार द्वारा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के सहयोग से 1973 में बाघ परियोजना को शुरू की गयी थी, और यह इस तरह की पहली पहल थी जिसका उद्देश्य मुख्य प्रजातियों और उसके सभी निवास स्थानों की रक्षा करना था।

हाथी परियोजना-  उत्तर और पूर्वोत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में हाथियों के प्राकृतिक निवास में उनकी एक व्यवहार्य आबादी की लंबी अवधि के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए 1992 में हाथी परियोजना शुरू की गयी थी।

उड़ीसा - ओलिव रिडले कछुए- उड़ीसा तट के गहिरमाथा और अन्य दो स्थानों पर प्रतिवर्ष दिसंबर और अप्रैल के बीच बड़े पैमाने पर हजारों की संख्या में ओलिव रिडले कछुए एकत्र होते थे। इन निवास स्थानों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। 1974 में इस समुद्र तट की 'खोज' के बाद इसे एक अभ्यारण्य (भीटारकनाईका अभ्यारण्य) के रूप में अधिसूचित किया गया था। 

मगरमच्छ संरक्षण- मगरमच्छ पर खतरा मंडरा रहा है क्योंकि उनकी त्वचा का प्रयोग चमड़े का सामान बनाने के लिए किया जाता है। इस कारण भारत ने 1960 के दशक में जंगलों में मगरमच्छ के विलुप्त होने पर चिंता व्यक्त की थी। प्रजनन केंद्रों का निर्माण कर उनके प्राकृतिक निवास में मगरमच्छों की शेष आबादी की रक्षा करने के उद्देश्य से 1975 में मगरमच्छ प्रजनन और संरक्षण का एक कार्यक्रम शुरू किया गया था।

पूर्व स्वस्थानी संरक्षण- इस समय ऐसी परिस्थितियां हैं जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियां विलुप्त होने के इतने करीब हैं कि वैकल्पिक तरीकों की शुरूआत की जा रही है जिससे की तेजी सी विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाया जा सके। वनस्पति उद्यान या एक प्राणी उद्यान सावधानीपूर्ण नियंत्रित स्थिति में प्राकृतिक निवास स्थान के बाहर जहां विशेषज्ञ होते हैं वह कृत्रिम रूप से प्रबंधित शर्तों के तहत प्रजातियों की गणना करते हैं।

पर्यावरण और जैव विविधता से संबंधित पारित हुए महत्वपूर्ण भारतीय अधिनियम-

जैव विविधता अधिनियम 2002
भारतीय वन अधिनियम 1927 
वन संरक्षण अधिनियम 1980
मत्स्य अधिनियम 1897
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986। {4}

10. निष्कर्ष-

                            पृथ्वी पर लाखों की संख्या में जीव व वनस्पतियों की प्रजातियां विद्यमान है। सभी प्रजातियों की अपनी-अपनी विशेषता और आवास में विभिन्नता है। किन्तु इसके पश्चात् भी यह किसी न किसी तरह आपस में एक दूसरे से जुडी हुई है या एक दूसरे पर प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। किन्तु मानव की गतिविधियों से पर्यावरण में परिवर्तन हुए है और इन प्रजातियों की कडियां टूट रही है। इसी कारण से हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ रहा है। यह सब हमारे लिए गंभीर चेतावनी जैसा है। हम चाहे जितना विकास कर ले, चाहे जितने आधुनिक हो जाए या कितनी ही तकनीकों को अपना ले किन्तु हम अपनी बुनियादी आवश्यकताओं जैसे जल, भोजन, ऊर्जा, औषधि इत्यादि के लिए प्रकृति के पारिस्थितिक तंत्र पर ही निर्भर रहेंगे। आज समूचा विश्व कोविड-19 महामारी के प्रकोप से भयभीत है एवं इसके उपचार के लिए प्रयत्नशील है। किन्तु अब तक वे सभी तकनीकों को अपनाने के बाद भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाए है। किन्तु भारतीय आयुर्वेद विज्ञान की औषधियां इसके उपचार में अब तक सबसे अधिक कारगर साबित हुई है। हमारी प्रकृति में ही हमारे समाधान है। हम हमारी जैव विविधता को संरक्षित करे व इनका सही से उपयोग करना सीख ले तो यह हमें स्वस्थ व दीर्घायु बनायेंगी।

11. सन्दर्भ सूचि-   

(i) जैव विविधता - https://hi.wikipedia.org/wiki/
(ii) जैव-विविधता- https://rajyashikshasewa.blogspot.com/2018/11/biodiversity-its-types.html
(iii) पत्रिका आर्टिकल दिनांक 13-05-2020- आयुर्वेद के विकास से रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे- वैद्य बालेंदु प्रकाश।
(iv) भारत में जैव विविधता का संरक्षण- https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/

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