हमारे घर आंगन की गौरैया, घर आंगन से दूर न हो जाये

 



        वर्तमान में गौरैया की संख्या लगातार कम होती जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरैया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है। प्रदूषण और विकिरण से तापमान बढ़ रहा है जो की गौरैया के लिए प्रतिकूल हैं। खाना और घोंसले की तलाश में गौरैया इधर उधर भटक कर दम तोड़ रही है। गौरैया के संरक्षण और नीडन (रहने के स्थान) को बढ़ाने के लिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर कुछ न कुछ करना होगा अन्यथा यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। हम गौरैया के संरक्षण और नीडन (रहने के स्थान) को बढ़ाने के लिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर निम्न उपाय कर सकते है-

1. अपने घरों की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर रखकर।

2. गौरैया को खाने के लिए कुछ अनाज छतों और पार्कों में रखकर।

3. पक्षियों के रहने के लिए कृत्रिम बने घर भी बाजार में बिक रहे है जिसे हम खरीदकर अपने घर के बाहर लटका दे और उसमे दाना पानी रख दे तो चिड़िया उसमे अपना घर बनाकर रहने लगेगी। साथ ही हम पक्षियों के ऐसे कृत्रिम घरों का वितरण करके उनके लिए अधिक से अधिक घर स्थापित कर सकते है जिससे की गौरैया की संख्या में वृद्धि हो सके।

4. कीटनाशक का प्रयोग कम करके।

5. अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रख कर।

6. छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़े जिससे की गौरैया अपना घोंसला वहां बना सके।

7. गौरैया के घोंसलों को नष्ट न करके ।




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