नई पीढ़ी के मन में जगाना होगा भाषा प्रेम (Language love will have to be awakened in the minds of the new generation)



          हिंदी एक प्रतिष्ठा की भाषा है क्योंकि यह सम्प्रेषण की सबसे सरल और सुशोभित भाषा है। यह सटीक रूप से श्रोता के दिलों दिमाक पर स्पष्ट रूप से पहुंच जाती हैं। किन्तु आज की नई पीढ़ी हिंदी से दूर हो रही है। इसका सबसे प्रमुख कारण कॉन्वेंट संस्कृति को माना जा सकता है। जहां धारा प्रवाह अंग्रेजी संभाषण ही मुख्य भूमिका में होता है। जबकि विदेश में हिंदी सही दिशा में आगे बढ़ रही है। विभिन्न देशों में हिंदी का सम्मान किया जा रहा है। कई विदेशी विश्वविद्यालयों में वहां के स्थानीय विद्यार्थी हिंदी सीख रहे है। विडंबना है की हमारे हिंदी भाषी राष्ट्र में अभिभावक स्वयं ही हिंदी को पिछड़ेपन की निशानी मान रहे है। हमें समझना होगा की बच्चे गीली मिटटी के समान होते है। बचपन में उनको जो सिखाया जाता है जीवनभर के लिए उनके मन मस्तिष्क पर वही वैचारिक पृष्ठभूमि बनी रहती है। आज हमें अपनी आत्मा और मन को जगाने की आवश्यकता है। हमें हिंदी के विशेष महत्व को नई पीढ़ी के मन में महसूस कराना होगा। हिंदी को भूलने के बजाय इसे अंतः मन से सहर्ष स्वीकार करके सम्मान देने से ही यह बच पायेगी अन्यथा नहीं।

          Hindi is a language of prestige because it is the simplest and most beautiful language of communication.
It accurately reaches the listener's heart clearly.
But today's new generation is moving away from Hindi. Convent culture can be considered as the main reason for this.
Where English fluency is the main role of the stream.
Whereas Hindi is moving in the right direction abroad.
Hindi is being respected in various countries.
Local students are learning Hindi in many foreign universities.
Ironically, in our Hindi speaking nation, the parents themselves are considering Hindi as a sign of backwardness.
We have to understand that children are like wet soil.
What is taught to them in childhood remains the same ideological background on their mind and brain for life.
Today we need to awaken our soul and mind.
We have to realize the special importance of Hindi in the mind of the new generation.
Instead of forgetting Hindi, it will be saved only by accepting it with pleasure from the heart with respect and not otherwise.

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