प्राचीन ज्ञान को खोने से बचाए (Save from losing ancient knowledge)

 


         भारतीय प्राचीन धरोहरें देश की संस्कृति, सभ्यता और बीते समय की पहचान होती है. लेकिन वर्तमान समय में शासन-प्रशासन की इसमें रूचि नहीं होने से इनकी दुर्दशा हो रही है. यह धरोहरें व स्मारक जर्जर और खंडर में तब्दील होने लगे है. यदि इनकी ऐसी ही अनदेखी की गई तो हम हमारे प्राचीन ज्ञान को भी खो देंगे. शासन-प्रशासन से पहले हमारा स्वयं का कर्तव्य है की हम इन्हें सुरक्षित रखे किंतु विडंबना है कि हम ही इन्हें नुकसान पहुंचा रहें है. यदि हम भारत की कला-संस्कृति एवं इसका समृध्द इतिहास संरक्षित रखना चाहते है तो हमें हमारी प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करना होगा. इसके लिए सर्वप्रथम हमें इन स्थलों से जुड़े इतिहास, सांस्कृतिक संदर्भ, अनुष्ठान इत्यादि के बारे में प्रचार प्रसार करना होगा. सरकार के अलावा निजी संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, गैर सरकारी संस्थाओं आदि को भी इनके संरक्षण की जिम्मेदारी सौपनी चाहिए. 


       Indian ancient heritage is the identity of the country's culture, civilization and bygone times.

But at the present time, due to lack of interest in it, they are facing a plight.

These heritage and monuments have started turning into dilapidated and ruins.

If they were ignored like this, we would lose our ancient knowledge as well.

Before governance, it is our own duty to keep them safe, but ironically we are harming them.

If we want to preserve India's art-culture and its rich history, then we have to preserve our ancient heritage.

For this, first of all we have to disseminate the history, cultural references, rituals etc. associated with these sites. The government should also entrust the responsibility of protecting them to private institutions, universities, non-governmental organizations etc.



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