गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत सार्वभौमिक प्रासंगिक है

 

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                  आतंकवाद और सांप्रदायिक कट्टरता के इस समय में भी गांधी व उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता है, क्योंकि इनके सिद्धांतों के अनुसार सांप्रदायिक सद्भावना कायम रखने के लिये सभी धर्मों व विचारधारों का एक साथ होना ज़रूरी है. इन्होने  नरसेवा को ही नारायण सेवा मानकर दलितोद्धार व दरिद्रोद्धार को अपने जीवन का ध्येय बनाया. परन्तु इसके साथ ही एक बड़ी विडंबना है कि कुछ लोग इनके सिद्धांतों का अनुकरण करने के लिये तैयार नहीं है. लोगों ने तो उस रास्ते को ही बंद कर दिया है, जिस पर आगे बढ़ने की आज के दौर में महती आवश्यकता है. गांधी को प्रयोगधर्मी व्यक्ति माना जाता है क्योंकि इसे उन्होंने अपने जीवन में अपनाया. 20वीं शताब्दी में अधिकांश प्रभावशाली राष्ट्रों के लोगों में दलाई लामा, नेल्सन मंडेला, अल्बर्ट श्वाइत्ज़र, मार्टिन लूथर किंग, मिखाइल गोर्बाचोव, मदर टेरेसा, आंग सान सू की आदि लोगों ने अपने-अपने देश में गांधी की विचारधारा को अपनाया और अहिंसा को अपना हथियार बनाकर अपने राष्ट्रों में परिवर्तन लाए. यह इस बात का प्रमाण है कि गांधी ने भारत के बाहर भी अहिंसा के ज़रिये अन्याय के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी और उसमें विजय हुए. गांधी ने विश्व में शांति, प्रेम, अहिंसा, सत्य, ईमानदारी, मौलिक शुद्धता और करुणा को फैलाया. गांधीजी का बचपन, इनके सामाजिक व राजनीतिक विचार, खादी, सत्याग्रह, स्वावलंबन, ग्रामोद्योग, महिला शिक्षा, अस्पृश्यता एवं अन्य सामाजिक चेतना के विषय आज के युवाओं के लिए शोध एवं शिक्षण के लिए भी प्रमुख क्षेत्र है. गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत सार्वभौमिक प्रासंगिक है जो हमेशा ही प्रासंगिक रहेंगे.

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