श्री लालबहादुर शास्त्री व इनसे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य-
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काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया।
इससे पूर्व शास्त्रीजी उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त थे। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला कण्डक्टर्स की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया।
इनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया था। जबकि इससे तीन वर्ष पूर्व के चीन युद्ध को भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने इस युद्ध जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।
वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।
दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर इस आन्दोलन के गान्धीवादी नारे को चतुराई पूर्वक "मरो नहीं, मारो!" में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
लाल बहादुर शास्त्री के बारे में कुछ अज्ञात तथ्य-
- 1926 में, उन्हें काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के द्वारा 'शास्त्री' की उपाधि दी गई.
- शास्त्री जी स्कूल जाने के लिए दिन में दो बार अपने सिर पर किताबें बांध कर गंगा तैर के जाते थे क्योंकि उनके पास नाव लेने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं हुआ करता था.
- अपनी शादी में दहेज के रूप में उन्होंने खादी का कपड़ा और चरखा स्वीकार किया.
- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय इनकी बेटी टाइफाइड से बीमार हुई और उसकी मृत्यु हो गई क्योंकि तब इनके पास इतने रूपये नहीं थे की वह अपनी बेटी का इलाज अंग्रेजों द्वारा संचालित अस्पताल के अलावा कही और करा सके बावजूद इसके इन्होनें अंग्रेजों द्वारा संचालित अस्पताल में अपनी बेटी का इलाज नहीं कराया. इतनी बड़ी घटना के भी इन्होंने ईमानदारी नहीं छोड़ी और अपने वेतन से ही गुजरा किया.
- उन्होंने दहेज प्रथा और जाति प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई.
- शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे. तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया. शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी. वहीं अपनी शादी में उन्होंने दहेज लेने से इनकार कर दिया था. लेकिन ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया.
- प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कार नहीं रखी.
- स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए दो आम छिपाकर ले आई थीं. इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया. शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है.
- उनमें नैतिकता इस हद तक कूट कर भरी थी कि एक बार जेल से उनको बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन की पैरोल पर छोड़ा गया. लेकिन बीच में वह चल बसी तो शास्त्री जी वह अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस आ गए.
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