रोशनी के दीवाने कीट पतंगे, शमा को चुम कर मरते है


               जंतु जगत के संघ आर्थोपोडा के वर्ग इंसेक्टा में कीटों की प्रजातियां अन्य सभी संघों व वर्गों के सदस्यों से कई गुना अधिक है. इस वर्ग में विचित्र प्रकार के कीट और उनके क्रियाकलाप होते है. इसलिए इन कीटों का अध्ययन, शोध और जानकारियां पाना बहुत ही रुचिकर व मजेदार होता है. सभी जीवों की विशेषता भोजन और प्रजनन करना होती है. इसके लिए हर प्रजातियां अलग-अलग तरीके से संघर्ष करती है और अपना जीवन जीती और सन्तानोपत्ति करती है. कीट पतंगों में भोजन प्राप्ति और प्रजनन की चाह में रोशनी से आकर्षित होने की क्रियाविधि होती है. हालांकि यह इनके लिए मृत्यु का कारण भी बनती है. इनकी इसी क्रियाविधि को लेख के माध्यम से विस्तृत में समझते है.

कीट वर्ग- 

कार्ल लीनियस ने सन्‌ 1735 में कीट वर्ग में उन सभी प्राणियों को सम्मिलित किया जो अब संधिपाद समुदाय के अंतर्गत रखे गए है. कीटों का शरीर खंडों में विभाजित रहता है जिसमें सिर में मुख भाग, एक जोड़ी शृंगिकाएं , सामान्यत: एक जोड़ी संयुक्त नेत्र और बहुधा सरल नेत्र भी पाए जाते है. वृक्ष पर तीन जोड़ी टांगे और दो जोड़े पक्ष होते है. कुछ कीटों में एक ही जोड़ा पक्ष होता है, और कुछ पक्ष विहीन भी होते है. उदर में टांगे नहीं होती है. इनके पिछले सिरे पर गुदा होती है और गुदा से थोड़ा सा आगे की ओर जनन छिद्र होता है. श्वसन ट्रेकिया द्वारा होता है. इनका रक्त लाल कणिकाओं से विहीन होता है. परिवहन तंत्र खुला प्रकार का होता है.

रोशनी में कीट पतंगों का दीवानापन-

सामान्यतः जीव जंतु प्रकाश की ओर आकर्षित होते है. पौधों में प्रकाशानुवर्तन और गुरुत्वानुवर्तन के गुण विद्यमान है. कीटों में भी इसी तरह की परिघटना प्रकाशानुवर्तन या प्रकाशानुचलन होती है. प्रकाशानुवर्तन में पशु व कीट प्रकाश स्त्रोत की ओर गमन करते है. यदि यह प्रकाश की ओर जाए तब यह प्रवृत्ति धनात्मक प्रकाशानुचलन एवं प्रकाश से दूर जाना ऋणात्मक प्रकाशानुचलन कहलाता है. हालांकि इनका प्रकाश के प्रति आकर्षण भिन्न-भिन्न होता है. कॉक्रोच रोशनी से दूर अंधेरे की तरफ भागते हैं, जबकि कीट पतंगे प्रकाश स्त्रोत के करीब जाते है. उदाहरण के लिए जलते हुए बल्ब के चारों तरफ बारिश के मौसम में हमें ढेरों कीट पतंगों का झुण्ड दिखने को मिलता हैं. कीट पतंगे रोशनी (लाइट) की तरफ आकर्षित होते है. उसके इर्द गिर्द भिनभिनाते रहते है, और अंत में शमा को चूम कर (लाइट से टकराकर) मर जाते है. 

वैज्ञानिकों ने इनकी इस क्रियाविधि के ऊपर कई शोध किए और तर्क, अवधारणाएं व सिद्धांत दिए किन्तु पूरी तरह से सटीक रूप से आज भी इसका जवाब संदेहस्पद है.

कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत, तर्क एवं अवधारणाएं- 

# एक प्रसिद्ध सिद्धांत के अनुसार जब पूर्व में कृत्रिम लाइट नहीं थीं, तब कीट पतंगे चांद का पीछा किया करते होंगे क्योंकि वे अपनी  दिशा का निर्देशन कर सके. चूंकि चाँद से इनकी दुरी बहुत अधिक है इसलिए इनके द्वारा गति करने पर बनाया गया कोण हमेशा ही एक समान बना. लेकिन अब कृत्रिम लाइट के होने से उन्हें यह आभास होने लगा की चांद धरती पर आ गया है. और वे इस सिद्धांत के मुताबिक अपने और कृत्रिम प्रकाश स्त्रोत जिसे वे चाँद समझ रहे के बीच समान कोण बनाए रखना चाहते हैं, किन्तु प्रकाश स्त्रोत के करीब होने से वे ऐसा नहीं कर पाते है व उससे ही टकराकर मर जाते है.

# वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्‍ययन से पता चला है कि केवल नर कीट ही प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं जबकि मादा नहीं. ज्ञात हुआ की मादा कीट पतंगों द्वारा विशेष प्रकार की गंध निकाली जाती है जिससे की नर कीट पतंगों को वे अपनी ओर आ‍कर्षित कर सके. मादा द्वारा नर को आकर्षित करने के लिए जिस तरह की गंध निकलती है, उससे ही मिलती जुलती गंध प्रकाश से भी निकलती है. इस कारण से नर कीट को आभास होता है कि वहां कोई मादा है और उसी की खोज में नर कीट प्रकाश के करीब पहुंच जाते हैं और प्रकाश स्त्रोत से टकराकर मर जाते है.

# ऐसा भी माना जाता है की कीट पतंगे रोशनी के संपर्क में आने के बाद जब उससे दूर होते है तब उसके बाद इन्हें करीब आधे घंटे तक कुछ भी दिखाई नहीं देता है. इस वजह से यह अंधेपन से बचने के लिए उसी लाइट के चारों ओर ही भिनभिनाते रहते हैं. जब अचानक से ये लाइट के ज्यादा करीब पहुंच जाते है और उससे टकराते है तब उसकी गर्मी से इनकी मौत हो जाती है.

# वैज्ञानिकों के परीक्षणों द्वारा यह बात भी सामने आयी की कुछ मादा पतंगे अपने शरीर से अवरक्त प्रकाश (इंफ़्रारेड) उत्पन्न करती है जिससे की नर पतंगे आकर्षित होते हैं। ठीक उसी तरह का अवरक्त प्रकाश आग या जलती हुई चीजों से उत्पन्न होता है जिससे की नर पतंगे आकर्षित होते हैं। यही कारण है की कीट पतंगे प्रकाश स्त्रोत के आसपास मंडराते रहते है.

# यहां तक की रात में सफेद व पीले रंग के कपड़ों में कीड़े चिपकने लगते है क्योंकि इन कीड़ों को पराबैंगनी प्रकाश और कम तरंग दैर्ध्य के रंग ज़्यादा आकर्षित करते है. इससे निष्कर्ष निकला जा सकता है की यह प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदी होते है.

वैज्ञानिकों द्वारा कितने ही प्रयोग व परीक्षण कर निष्कर्ष निकाले जा रहे हो और आगे भी निकाले जाएंगे. किन्तु यह भी उतना ही सही है की कीट पतंगों की जो प्राकृतिक अद्वितीय दिशा निर्देशन प्रणाली थी वह मनुष्य के कृत्रिम अविष्कारों की वजह से ध्वस्त हो गयी है. कीट पतंगों की इस समस्या का समाधान जब तक विकासवाद के सिद्धांत के अनुरूप नहीं हो जाता तब तक बेचारे रोशनी के दीवाने निशाचर कीट पतंगे, शमा को चुम कर मरते रहेंगे.

कीट वर्ग की अन्य विशेषता भी है महत्वपूर्ण -

कीटों की जातियां प्राणियों में सर्वाधिक है. कीटों की संख्या अन्य सभी प्राणियों की सम्मिलित संख्या से भी करीब छह गुना अधिक है. अनुमानित आधार पर लगभग कीटों की बीस लाख जातियां  विद्यमान है. इनमें पंखों की उपस्थिति के कारण इन्हें विकिरण में सहायता मिलती है. यह जल, स्थल और आकाश तीनों ही जगह विचरण करते है. पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूपों में कीट वर्ग का योगदान 90% है. इनकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इनमें जब तक जान रहती है तब तक यह भोजन की प्राप्ति तथा संतानोत्पति के कार्य की पूर्ति में निरंतर लगे रहते है.

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