कहानी: "पौधों की परवरिश"- पद्मा भार्गव, खलघाट, मप्र
राम और कालू दो घनिष्ट मित्र थे। दोनों ने हाल ही में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की और एक ही संस्थान में नौकरी करने लगे। इस संस्थान में विज्ञान की नई तकनीकों द्वारा पर्यावरण हितैषी प्रोजेक्ट किए जाते है। ऐसा ही एक प्रोजेक्ट राम और कालू को भी संस्थान ने दिया है जिसके अंतर्गत उन्हें मशीनों की सहायता से उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करने तथा इन बीजों को बौने से लेकर इनके अंकुरण व अंकुरण पश्चात् पौधे की निश्चित ऊंचाई तक बढ़ने की देखभाल करना है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत तीन माह में दस हजार बीजों को सड़क पर बने डिवाइडर के बीच वाली खाली जगह पर बौना तथा उनके पौधे बनने तक की जवाबदारी उठाना हैं। इस तरह सड़क के बीच पौधे होने से प्रदुषण नियंत्रित होगा और पर्यावरण बेहतर बन सकेगा।
राम और कालू दोनों खूब मेहनत करते और मशीनों से उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करते। एवं चयन के पश्चात् जो अमानक बीज बच जाते वह संस्थान के किसी काम के नहीं होते इसलिए वे उन अमानक बीजों को अपने साथ ले जाते और ऑफिस से घर तक पैदल जाते हुए उन्हें भी रास्ते में बौ देते। ऐसा प्रतिदिन राम और कालू दोनों ही किया करते। उधर उनका प्रोजेक्ट भी पूरा होने लगा। उन्होंने तीन माह में हाईवे रोड पूरी तरह हरा भरा, सुन्दर व आकर्षक बना दिया। इसी वजह से केंद्र सरकार ने उनकी संस्थान को बेहतर पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान के लिए नेशनल अवार्ड भी दिया। इस तरह हरी भरी ख़ुशी के साथ संस्थान व राम और कालू का अपना यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ।
दूसरी और ऑफिस से लेकर राम और कालू के घर तक बौए गए अमानक बीजों से भी अंकुरण हुआ और इनसे भी पौधे बने। क्योंकि ऑफिस आते-जाते वक्त राम और कालू दोनों इनकी देखभाल करते। दोनों ही एक-एक दिन इनकी सिंचाई का जिम्मा भी उठाते थे जिसका परिणाम यहां हरियाली का होना है।
संस्थान अपने अगले पर्यावरण हितैषी प्रोजेक्ट के काम में लग गयी। इसी तरह अगला प्रोजेक्ट भी पूरा होता है संस्थान को अवार्ड मिलते रहते है।
लेकिन यह कोई नहीं जानता की कल क्या होगा? क्योंकि जिस तरह से प्रदूषण बढ़ रहा है क्या सरकार द्वारा, संस्थान द्वारा किए गए तीन माह, छह माह या वर्ष भर चलने वाले प्रोजेक्ट और अवार्ड पर्यावरण की रक्षा कर पाएंगे? क्या विज्ञान की नई-नई तकनीकें मानव और पर्यावरण के लिए वरदान साबित होगी? इस तरह के कई प्रश्न राम और कालू के मस्तिष्क में घूमते रहते है।
अंततः राम और कालू को अपने इन प्रश्नों का सही उत्तर कुछ ही महीनों में मिल जाता है। क्योंकि कुछ ही महोनों बाद उन्हें देखने में आता है की उनके द्वारा प्रोजेक्ट में लगाए गए पौधे जो हाईवे की शान हुआ करते थे तथा जिनके लिए उनकी संस्थान को राष्ट्रीय अवार्ड भी मिला था कुछ ही महीनों में वे सारे पौधे सुख गए है। जबकि उनकी परवरिश वैज्ञानिक तकनीक व उच्च गुणवत्ता वाले बीजों से हुई थी। जबकि अब भी ऑफिस से लेकर राम और कालू के घर तक के रास्ता जो की करीब पांच किलोमीटर का रास्ता है। वहां अमानक बीजों से पौधे तैयार किए थे। वे सभी अब भी हरे भरे है। राम और कालू तुरंत समझ गए की चाहे जितनी वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग क्यों न कर लिया जाए किन्तु बिना देखभाल के पौधों को जीवित रख पाना संभव नहीं है।
ऑफिस के रास्ते वाले पौधों की देखभाल प्रतिदिन होती थी इसलिए वे आज भी खिलखिला रहे हैं और राहगीरों को स्वच्छ प्राणवायु के साथ ही पर्यावरण को बेहतर बना रहे है।
अब राम और कालू समझ चुके है की आने वाले कल में विज्ञान या वैज्ञानिक तकनीक के भरोसे पर्यावरण को पूरी तरह संरक्षित कर पाने में कदापि सफलता हासिल नहीं हो सकेगी। हमें पर्यावरण को बचाने के लिए वैज्ञानिक तकनीक के साथ पर्यावरण के संरक्षण के लिए निरंतर अपने प्रतिदिन किए जाने वाले कार्यों में भी सुधार की जरूरत होंगी। हमारी पर्यावरण के लिए चिंता और उसके संरक्षण के लिए प्रतिदिन किए गए छोटे-छोटे कार्य पर्यावरण को बचा पाएंगे। बेहतर यही होगा की हम सिर्फ विज्ञान के भरोसे न रहे.
thank you...
ReplyDeleteVery nice story
ReplyDeletethank u so much....
DeleteSave earth save life
ReplyDeleteyess...
Deletevery nice
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