गिरगिट और रंग बदलने वाली कृत्रिम त्वचा

गिरगिट सरीसृप परिवार कैमेलियोनटिडी का एक सदस्य है. यह अपने रंग बदलने और एक लम्बी, पतली तथा फैल सकने वाली जीभ के लिए जाना जाता है. भारतीय गिरगिट ‘कैमेलियन वल्गैरिस’ कहलाता है. पश्चिमी एशिया और मध्य अफ्रीका में भी यह जाति पायी जाती है. इसकी लम्बाई 15 इंच तक होती है. पूंछ पीछे से मुड़ी हुई होती है, जिससे यह टहनी से लटककर झूल सकता है. मारवाड़ी भाषा में इसे "कागीटा" या "काकीडा" कहा जाता है. जब इसकी गर्दन का रंग गहरा लाल हो जाता है तो राजस्थान के निवासी इसे वर्षा के आने का शुभ संकेत मानते है.

गिरगिट के पैर पक्षियों के सामान होते है जिसमें दो पंजे आगे की ओर और दो पंजे पीछे कि ओर होते है इन पंजों द्वारा यह  दाएँ-बाएँ मटक-मटक कर चलते है. इनकी जीभ बहुत लम्बी होती है जिसे फुर्ती से बाहर निकाल कर यह अपना शिकार पकड़ते है. इनके माथे और थूथन पर कांटे-जैसे सींग और चोटियां (क्रेस्ट) होते है. बड़ी गिरगिटों की पूँछ लम्बी और लचकीली होती है जिससे की इन्हें टहनियाँ पकड़कर चढ़ने में आसानी होती है. इनकी आँखें अलग-अलग नियंत्रित होती है लेकिन शिकार करते हुए संगठित रूप से एक साथ काम करती है.

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क्यों, कैसे और कब बदलता है गिरगिट अपना रंग-

गिरगिट विपरीत लिंग को रिझाने और शिकार व शिकारी को धोखा देने के लिए अपना रंग बदल लेता है. वैज्ञानिकों ने इन पर शोध कर दावा किया कि गिरगिट की त्वचा में खास तरह के वर्णक होते है जो रंग बदलते है. रंग बदलने वाले ज्यादातर जीवों में मेलनिन नामका वर्णक होता है. यह मेलानोफोरस नामक कोशिकाओं में घटता बढ़ता रहता है. इसी वजह से त्वचा का रंग बदलता है. किन्तु जिनेवा यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञानियों ने इस दावे के खारिज कर दिया. शोधकर्ता मिषेल मिलिनकोविच के अनुसार गिरगिट के रंग बदलने का कारण उसकी शारीरिक प्रक्रिया है. शोध के दौरान जिनेवा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को पता चला कि वयस्क पैंथर गिरगिट माहौल के हिसाब से पहले हरे से पीला या नारंगी और नीले से सफेद होता है. इसके बाद वो काला पड़ने लगता है. वैज्ञानिकों को पता चला कि गिरगिट की त्वचा में फोटोनिक क्रिस्टल नामक अतिसूक्ष्म क्रिस्टलों की एक परत होती है. ये नैनो साइज के क्रिस्टल होते है. क्रिस्टलों की ये परत पिगमेंट कोशिकाओं के नीचे होती है. यही परत प्रकाश के परावर्तन को प्रभावित करती है और गिरगिट का बदला हुआ रंग दिखाई पड़ता है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक गिरगिट में नैनो क्रिस्टलों की एक और परत भी होती है. इसके क्रिस्टल पहली परत के मुकाबले ज्यादा बड़े होते हैं. बहुत तेज प्रकाश होने पर ये गिरगिट को गर्मी से बचाते हैं.

इस तरह गिरगिट की त्वचा के भीतर दो परतदार परतें होती है जो उनके रंग और थर्मोरेग्यूलेशन को नियंत्रित करती है. शीर्ष परत में ग्वानिन नैनोक्रिस्टल्स की एक जाली होती है, जो रंग बदलने में प्रकाश की तरंग दैर्ध्य को प्रभावित करता है. मिषेल मिलिनकोविच ने बताया की जब गिरगिट शांत होता है तो क्रिस्टल एक सघन नेटवर्क की तरह जमा हो जाते है और प्रकाश में मौजूद नीले तरंगदैर्घ्य को परावर्तित करते है. इसके उलट जब वो जोश में होता है तो नैनो क्रिस्टलों की परत ढीली पड़ जाती है, इससे पीला और लाल रंग परावर्तित होता है.

गिरगिट की त्वचा में कुछ पीले रंग के पिगमेंट भी होते है, जो कि नीले रंग के साथ संयुक्त होते है, यह एक सुकून देने वाले क्रिस्टल जाली के रूप में दिखाई देते है. हरा रंग इनके शांत अवस्था की विशेषताओं में से एक है. गिरगिट में रंग पट्टियां विकास और पर्यावरण के माध्यम से विकसित हुई है. जंगल में रहने वाले गिरगिटों के पास रेगिस्तान या सवाना में रहने वाले गिरगिटों की तुलना में अधिक परिभाषित और रंगीन पैलेट है, जिनमें एक मूल, भूरा और आकर्षक पैलेट होता है.

गिरगिट की विभिन्न प्रजातियां गुलाबी, नीले, लाल, नारंगी, हरे, काले, भूरे, हल्के नीले, पीले, फ़िरोज़ा, और बैंगनी के संयोजन के माध्यम से अपने रंग और पैटर्न को अलग करने में सक्षम है. 

कुछ प्रजातियों, जैसे कि स्मिथ के बौने गिरगिट, विशिष्ट शिकारी प्रजातियों की दृष्टि के छलावरण के लिए अपने रंगों को समायोजित करते है व शिकार बनने से बच जाते है. गिरगिट में रंग परिवर्तन द्वारा छलावरण का कार्य किया जाता है, परन्तु आमतौर पर सामाजिक संकेतन और तापमान और अन्य स्थितियों के लिए प्रतिक्रियाओं में भी इनके द्वारा शरीर का रंग परिवर्तन होता है. इन कार्यों का सापेक्ष महत्व परिस्थितियों के साथ-साथ प्रजातियों के साथ भिन्न होता है. गिरगिट अस्थानिक (Ectopic) होते है, इसके अतिरिक्त वे शरीर के तापमान को विनियमित करने के लिए अपने शरीर का रंग गहरा या हल्का करते है. गिरगिट को जब दूसरे गिरगिटों पर आक्रामकता दिखानी होती है तो वे चमकीले रंग दिखाते है, और जब वे हार मान लेते है तो अपना रंग छोड़ देते है. मेडागास्कर और कुछ अफ्रीकी मूल की कुछ प्रजातियों में खोपड़ी के ट्यूबरकल में नीली प्रतिदीप्ति होती है, जो हड्डियों से निकलती है और संभवतः एक संकेतक की भूमिका निभाती है.

रेगिस्तान में रहने वाले नामाका गिरगिट भी थर्मोरेग्यूलेशन की सहायता से रंग परिवर्तन करते है, यह सुबह में काले हो जाते है ताकि गर्मी को अधिक कुशलता से अवशोषित किया जा सके, फिर दिन की गर्मी के दौरान प्रकाश को प्रतिबिंबित करने के लिए हल्का ग्रे रंग कर लेते है. यह एक ही समय में दोनों रंगों को भी दिखा सकता है.

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गिरगिट के अलावा मेंढकों, छिपकलियों और मकड़ियों की भी कुछ प्रजातियां रंग बदलती है. 

रंग बदलने वाली कृत्रिम त्वचा-

गिरगिट के इस तरह रंग बदलने की कला और सौंदर्य से वैज्ञानिकों ने इनकी रंग बदलने की क्रियाविधि के आधार पर एक स्मार्ट त्वचा बना दी है, जो गर्मी और सूरज की रोशनी के संपर्क में आते ही रंग बदलती है जिसे गिरगिट की तरह रंग बदलने में सक्षम कहा जा सकता है.

ACS नैनो जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के लेखक Yixiao Dong ने बताया की 'गिरगिट को रंग बदलते हुए देखने पर यह विचार आया की प्रकृति कैसे यह करती है, उसके अवलोकन के आधार पर हमने रंग बदलने वाली स्मार्ट त्वचा के लिए एक नई अवधारणा विकसित की है.' इसमें वैज्ञानिकों ने पॉलिमर में बारीक गोल्ड कोटेड पार्टिकल और तेल में वॉटर वेपर की मदद से कृत्रिम रंग बदलने वाली त्वचा को तैयार किया है. शोध जनरल एडवांस ऑप्टिकल मटेरियल के अनुसार त्वचा में मौजूद रंग बदलने वाला मटेरियल प्रकाश की गर्मी से वॉटर वेपर के गुच्छों में परिवर्तित हो जाता है. इसके बाद जैसे-जैसे प्रकाश के कारण गर्मी कम या ज़्यादा होगी, वैसे-वैसे त्वचा का रंग बदलने लगेगा.

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            मानव अपने शरीर को अतिसुन्दर दिखाने के लिए हर संभव प्रयास करता है. ऐसे में भविष्य में इस बात की प्रबल संभावना होगी की मानव अपने आप को विशिष्ट और अतिसुन्दर दिखाने के लिए रंग बदलने वाली कृत्रिम त्वचा को ट्रांसप्लांट करे.

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