रूढ़ीवादी मानसिकता को खत्म करना होगा- निकिता चौहान, इंदौर, मप्र
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वर्तमान में हम 21वीं सदी में रह रहें है किंतु आज भी हमारे समाज की मानसिकता 18 वी शताब्दी की प्रतीत होती है, क्योंकि ग्रामीण स्त्रियां आज भी समाज की रूढ़िवादी मानसिकता से पूरी तरह आजाद नहीं है. ग्रामीण स्त्रियां अपने अधिकारों के लिए सामाजिक परम्परओं एवं अपने अस्मिता के प्रश्न को लेकर जूझती आ रही है. कई ग्रामीण स्त्रियों को सामाजिक रूढ़ियां, परंपराओं और संस्कारो का हवाला देकर घूंघट में कैद रखा जाता है. यहां तक की ग्रामीण स्त्रियों को अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं दिया जाता है , उन्हें केवल चूल्हे - चोके तक ही सीमित रखा जाता है. इससे स्पष्ट है की बस कहने भर के लिए स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त है. आज भी हमारे समाज में पुरुषों को ही प्रधान माना जाता है. स्त्रियों को ही क्यो परम्पराओं व संस्कारो की बेढ़िया पहनाकर उनकी इच्छाओं का गला घोटा जाता है?आखिर क्यों समाज के सारे नियम व कानून स्त्रियों पर लागू होते है पुरुषों पर क्यों नहीं? ऐसा नहीं है कि स्त्रियां परंपराओं या संस्कारो का विरोध करती है, हर स्त्री को समाज में वह अधिकार , सम्मान व एक स्वतन्त्र पहचान प्राप्त होनी चाहिए जो एक पुरुष को प्राप्त होती है.
स्वामी विवेकानन्द जी ने ठीक ही कहा है कि जब तक हम महिलाएं स्वयं अपने विकास के लिए आगे नहीं आएगी तब तक हमारा विकास असंभव है.
अत: हम ग्रामीण महिलाओं को भी आगे आकर अपने अस्तिव के लिए लड़ना होगा. समाज की रूढ़िवादी मानसिकता , परम्पराओं व विचारो से बाहर निकल कर अपनी एक अलग पहचान बनानी होगी.
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Very nicenice nikita
ReplyDeleteYes....
DeleteDhanyawad professor bhaiya
Deleteबहुत सही कहा
ReplyDeletehaa....
DeleteTrue
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