कविता (Poem)
प्रकाश
भोर का उजास कहें,
या तेज ये प्रकाश कहें,
किरणों का अपना है तेज़,
सूर्य सा कर्म हो नैक।
सूर्य सा कर्म हो नैक।
हैं सूर्य तेरे नाम अनेक,
पर कर्म तेरा सदैव ही एक,
भास्कर,रवि और दिनकर,
कर्म तेरा सदैव हितकर,
हे देवा दि देव सूरज,
तू हैं पूंज की मूरत,
सदैव रहें तेरा दीप्त पूंज,
हर और सदा एक ही गूंज,
मानव कर्म कर हितकर,
,हितकर यदि कर्म होगा,
विजयी, विश्व धर्म होगा।
धर्म की होगी सदा ही जीत,
आदित्य पूंज बुद्धि का मीत,
बुद्धि तेरी श्वेत उजास,
हर और दिखें प्रकाश ही प्रकाश।
हर और दिखें प्रकाश ही प्रकाश।।
-कृष्णा जोशी, इन्दौर, मध्य प्रदेश
सुन्दर शब्द रचना.....
ReplyDeleteधन्यवाद...
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