कविता- जिंदगानी: कृष्णा जोशी, इंदौर, मप्र
कभी पाठशाला में पहली बार जानें में डर लगता था,
आज तन्हा- तन्हा ही दुनिया घूम लेते हैं।
पहले प्रथम आने के लिए पढ़ते थे,
आज धनोपार्जन के लिए पढ़ते हैं।
कभी छोटी सी ठेस ( आघात) लगने पर रोते थे,
आज परीक्षा में असफल होने पर भी संभल जातें हैं।
पहले हम मित्रों के साथ रहते थे,
आज मित्र हमारी यादों में रहते हैं।
पहले रुठना मनाना रोज़ का कर्म था,
अब एक बार रुठते है तों रिश्ते टूट जाते हैं।
सच में हयात तूने बहुत कुछ सिखा दिया,
सच में हयात तूने बहुत कुछ सिखा दिया
जानें कब इतना विराट बना दिया।
अब तू कर ले बंदगी,
इसी का नाम है जिंदगी, जिंदगी, जिंदगी।
सुन्दर
ReplyDeleteThank You.... 💐
DeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteBadiya
ReplyDeletenice
ReplyDeletenice....
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