मेरे सपनों का स्वर्णिम मेरा समाज: भाग-1
अपने अधिकारों को जाने तथा समाज के उत्थान के लिए अपनी भूमिका निभाए
हमारा बलाई समाज चक्रवती दानवीर सम्राट राजा बली का वंशज माना जाता हैं। जो मूल रूप से राजस्थान से आकर मध्य प्रदेश के मालवा, निमाड़ के क्षेत्रों में बसा है। बलाई शब्द का संधि विच्छेद करके देखा जाए तो यह दो सार्थक शब्दों से मिला हुआ प्रतीत होता हैं- बल + आई (बल = शक्ति,आई=आना)। पहले हमारा समाज समूहों में निवास करता था तथा उस वक्त हो रहे अत्याचारों का एक साथ मिलकर मुकाबला करने के लिए पहचाना जाता था। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, बल का आना अर्थात बलाई।
कालांतर में मनुवादी व्यवस्था ने हमें चौथे वर्ण (शुद्र) श्रेणी में रखा था, जिससे हमारें समाज की गंभीर और दयनीय स्थिती हो गई।
हमारा समाज सवर्णों पर आश्रित हो गया, जिससे वे अपनी मन मर्जी से बलाइयों का शोषण करते रहे। आज हमारें समाज को यह समझने की जरूरत है कि वह किसी भी पुरानी रूढ़ियों, रस्म रिवाजो या धारणा को जो समाज के लिए अनर्थकारी या अहितकर सिद्ध हो रही हो, उसे अमान्य कर हमारें निष्ठावान समाज सुधारकों के बताए हुए मार्ग पर चलें। हमें विज्ञानवादी विचारधारा को महत्व देना चाहिए तभी हमारा समाज पुरानी अंधविश्वासी बेड़ियों से छूटकर एक उज्ज्वल व सर्वश्रेष्ट समाज की ओर बढ़ेगा। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि पुराने विचारों के बने दुर्ग या गढ़ को ध्वस्त करने वाले सुधारकों को बड़ी कठिनाइयों व आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
मेरे विचार में कोई समाज ऐसा नहीं हो सकता जिसमें की सभी लोग एक ही ढंग से विचार करे व एक समान हो। सभी में शारीरिक, मानसिक, शिक्षण प्रशिक्षण के कारण विभिन्नताएँ होती है एवं हर समाज में उच्चता और निम्नता की स्थिती का स्तरीकरण होता हैं। अंतर केवल सरल और जटिल समाज के आधारों का हैं।
सरल समाज में लिंग -स्त्री पुरुष, आयु -युवा ,प्रौढ़ ,वृद्ध, आनुवंशिकता - वंशज ,जाति के आधार पर माने जाते हैं ,जबकि जटिल समाज में यह शिक्षा, व्यवसाय,आय, शारीरिक व मानसिक श्रम के आधार पर उच्चता और निम्नता को निश्चित करते हैं।
भारतीय परिवेश के सर्वमान्य आधार मुख्य रूप से दो है-
एक कर्म का- जिसके द्वारा व्यक्ति कर्म करके अपनी स्थिति को बदल सकता व निम्न से उच्च स्तर पर पहुँच सकता है अर्थात कर्म कर निरन्तर प्रयासों से श्रमिक फैक्ट्री का मालिक बन सकता हैं। दूसरी ओर कर्म के प्रति उदासीन फैक्ट्री मालिक कर्म न करने के कारण श्रमिक की स्थिति में आ सकता हैं।
दूसरा आधार जन्म का है- मात्र जन्म लेने से ही उसकी स्थिति निश्चित हो जाती है जैसे- उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति जन्म से ही उच्च जाति का माना जाता हैं चाहे वह नीच कर्म करे, जो कि सर्वथा गलत है, व्यक्ति की पहचान उसके कर्मो से होनी चाहिये न की जाति या वर्णव्यवस्था से।
आज हमारा समाज सदियों से मनुवादी विचारधारा से जकड़ा हुआ है और यथास्थिति में रहने का प्रयास कर रहा है, जिसे बदलना होगा तथा रूढ़ियों, अंधविश्वासों, दकियानूसी विचारधाराओं, अंधपरम्पराओं - मान्यताओं और कुसंस्कारो से जकड़े समाज को जगाना होगा, तथा समाज के हर व्यक्ति को इसके लिए अथक प्रयास करने होंगे।
हमारें समाज की महिलाओं की स्थिति मनुवादी व्यवस्था के समय चिंतनीय व दयनीय थी। बाबा साहब के द्वारा संविधान में प्रदत अधिकारों के कारण आज महिलाएं पढ़ लिख कर नौकरी पेशे में आई है, परन्तु पुरानी रीति रिवाजों, अंधभक्ति और अंधपरम्पराओं से आज भी जकड़ी हुई हैं। महिला और पुरुष समाज के आधार है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, ये जीवनरूपी रथ के ऐसे पहिये है जिनसे जीवनरूपी यात्रा सुचारू रूप से संचालित होती हैं। जिस भी समाज में महिलाओं की उपेक्षा की गई ,उस समाज का विकास अवरुद्ध हुआ हैं। स्त्रियों की उन्नति के बिना समाज का उत्थान नहीं हो सकता। हमारें समाज के लिए सावत्री बाई फूले एक आदर्श हैं जिन्होंने महिला शिक्षा पर जोर दिया। कई महान समाज सुधारक जो हमारें प्रेरणा स्रोत भी है ,जरूरत है तो उनके बताए मार्ग पर चलने की। अतः हमारा उद्देश्य यह होना चाहिये हम अपने अधिकारों को जाने तथा समाज के उत्थान के लिए प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भूमिका निभाए।
-ओंकार सोलंकी, शिक्षक, राजगढ़, जिला-धार, मप्र
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समाज को प्रगतिशील व उन्नतिशील बनाए रखना होगा
हमें हमेशा समाज के हित के लिए कार्य करना चाहिए. समाज में हर कार्य जागरूकता से किया जान चाहिए. हमारे समाज की महिलाओं को हमेशा हर कार्य में आगे लाने का प्रयास करना चाहिए. समाज को प्रगतिशील व उन्नतिशील बनाए रखना होगा.
अंबर नीला समंदर नीला
नीली तेरी निशानी है
अंबर से ऊँची समंदर से गहरी
बाबा साहेब आपकी कहानी है.
-लोकेन्द्र वर्मा, पंचवटी कॉलोनी, मनावर, धार
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Good
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