मेरे सपनों का स्वर्णिम मेरा समाज: भाग-4

 उच्च जातियों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार का उल्लेख करता असहनीय भाषण


          मुझे मिले इस अवसर पर मैं आप सब से अंबेडकर जी के उस भाषण को प्रस्तुत करना चाहती हूँ जिसे बाबा साहब अंबेडकर ने लाहौर जातपात तोड़क मंडल 1936 के वार्षिक सम्मेलन के लिए तैयार किया था-

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अछूतों के साथ उच्च जातियों के दुर्व्यवहारों का उल्लेख किया है -

मराठा राज्य में पेशवाओं के शासन में यदि कोई हिन्दू सड़क पर आ रहा होता था तो किसी अछूत को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं थी क्योंकि उसकी परछाई से वह उच्च हिन्दू अपवित्र हो जाएगा.

अछूतों के लिए यह आवश्यक था की वह अपनी कलाई या गर्दन में निशानी के तौर पर एक काला धागा बांधे, जिससे की उच्च हिन्दू गलती से भी उसे न छुए और अपवित्र होने से बच जाए. 

पेशवाओं की राजधानी पूना में किसी भी अछूत के लिए अपनी कमर में झाड़ू बांधकर चलना आवश्यक था जिससे की उसके चलने से पीछे की धूल साफ होती रहे, और कोई उच्च जाती का अपवित्र न हो.

4 जनवरी 1928 के 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार इंदौर जिले के 15 गांवों की ऊँची जाति के हिन्दुओं ने अपने-अपने गांवों के बलाइयों को सूचित किया था की यदि वे उनमें रहना चाहते है तो उन्हें नियमों का पालन करना होगा-

# बलाई सुनहरी गोटेदार किनारी की पगड़ियां नहीं बांधेंगे.

# वे रंगीन या फैंसी किनारों की धोतियाँ नहीं पहनेंगे.

# वे किसी हिन्दू की मृत्यु पर मृतक के संबंधित को चाहे वह कितनी ही दूर क्यों न रहते हो सुचना देंगे.

# सभी हिन्दुओं के विवाहों में बलाई लोग बारात के आगे और विवाह के दौरान बाजा बजाएंगे.

# बलाई स्त्रियां सोने या चांदी के आभूषण नहीं पहनेंगी. वे फैंसी गाउन या जैकेट भी नहीं पहनेगी.

# बलाई स्त्रियों को हिन्दू स्त्रियों के प्रसव के सभी मामलों में देखरेख करनी होगी.

# बलाई लोगों को बिना कोई पारिश्रमिक मांगे सेवा करनी होगी और हिन्दू उन्हें जो कुछ खुश होकर देंगे लेना होगा.

# अगर बलाई लोग इन शर्तों का पालन नहीं करते है तो उन्हें गांव छोड़कर जाना होगा.

डॉ. भीमराव जी कहते है कि यद्यपि मैं धर्म के नियमों कि निंदा करता हूँ, इसका अर्थ यह न लगाया जाए की धर्म की आवश्यकता ही नहीं, सच्चा धर्म समाज की नींव है जिस पर सब नागरिक सरकारें टिकी हुई है.

अंबेडकर जी के विचार में धर्म में सुधार के मूलभूत मुद्दे इस प्रकार है-

# हिन्दू धर्म की केवल एक और केवल एक ही मानक पुस्तक होनी चाहिए.

# प्रत्येक व्यक्ति जो अपने को हिन्दू मानता है उसे राज्य के द्वारा परीक्षा पास कर सनद प्राप्त कर लेने पर पुजारी बनने का अधिकार होना चाहिए.

# बिना सनद के धर्मानुष्ठान करने को कानून वैद्य नहीं माना जाना चाहिए.

# पुजारी एक सरकारी नौकरी होनी चाहिए.

# पुजारियों की संख्या आवश्यकतानुसार सीमित की जानी चाहिए.

यह भाषण स्वागत समिति द्वारा सम्मेलन को रद्द कर दिए जाने के परिणामस्वरूप नहीं पढ़ा जा सका क्योंकि भाषण में व्यक्त विचार सम्मेलन के लिए असहनीय होंगे.

यहां मैंने सिर्फ अंबेडकर जी के भाषण के कुछ अंश ही लिखे है. मात्र इतने से ही हम अपने अतीत को समझ सकते है की उच्च जातियों द्वारा हमारा शोषण किया जाता था. किन्तु अंबेडकर जी ने हमारे लिए संघर्ष किया और आज हम अपने वर्तमान को देखे की उन्होंने हमें कहा से कहां पहुँचाया है. इनके द्वारा किए गए महान कार्यों से ही अच्छे समाज का निर्माण हुआ है. 

-दुर्गा सोलंकी, प्राथमिक शिक्षिका, अंबिका कॉलोनी, मनावर

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बौद्ध परंपराएं हमारें जन्म, मृत्यु, विवाह और धार्मिक संस्कारो में दृष्टिगोचर हों


साथियों ..। आज हम शिक्षित और जागरूक हो कर समाज उत्थान की दिशा में अग्रसर हैं । यह एक अभिनव व अनूठी पहल है।
समाज की महिलाएं और युवा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। क्योंकि सार्थक परिवर्तन को युवा ही प्रभावी रूप से कार्यरूप में परिणित कर सकते हैं तथा महिलाएं नई पीढ़ी में इन परिवर्तनों का बीजारोपण करने में सक्षम होती हैं।
आज जितना हमारा समाज पीढ़ी अंतराल के द्वंद्व में उलझा है ,शायद ही कोई समाज हो। वो चाहे विवाह की रस्में हों , धार्मिक उत्सव हों अथवा मृत्यु संस्कार हों ।
दरअसल सदियों की अशिक्षा और ग़रीबी के कारण हमारी कोई भी सर्वमान्य सामाजिक और धार्मिक पहचान ही नहीं रही। क्योंकि भूखे का धर्म सिर्फ़ रोटी ही हो सकता है।
प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक अन्याय और शोषण की इतनी लंबी दास्तान है कि क्या बतायें और क्या छोड़ें।
मैंने देखा है पिछली पीढ़ी को जब विवाह की रस्में अनावश्यक रूप से 10 से 12 दिन तक समपन्न होती रहती थीं। गणेश पूजन ,माता पूजन से लेकर मंडप के सार तक।  देखा है जब एक चबूतरे पर सिंगाजी की समाधि का प्रतीक बनाया जाता था और वर्ष में एक बार धार्मिक उत्सव मनाया जाता था । पिछली पीढ़ी को मैंने अपने परिजनों के शवों को दफ़नाते भी देखा है और वर्तमान पीढ़ी को जलाते हुए भी।
मुझे लगता है कि हम आज भी विकासशीलता के उस दोराहे पर खड़े हैं जिसमें हमारी कोई भी स्पष्ट धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान नहीं है। इसका मुख्य कारण अशिक्षा को ही माना जा सकता है।
फूले - अम्बेडकरी विचारधारा ने नई पीढ़ी के जीवन को काफी हद तक प्रभावित किया है। इस विचारधारा ने एक नवीन सकारात्मक व वैज्ञानिक सोच को विकसित किया है।
आज हमने यह जाना है कि हम विश्व की सबसे महान सिंधु सभ्यता के वंशज हैं। और कभी हम उस महान बौद्ध परंपरा के अनुयायी रहे हैं जो आज सम्पूर्ण विश्व मे शांति और अहिंसा का प्रकाश फैला रही है ।
मेरा मत बिल्कुल स्पष्ट है हमारे पूर्वज सारिपुत्र, मोगलायन, रैदास, कबीर, नानक, नारायण गुरु, पेरियार जैसे महापुरुष रहे हैं जिन्होंने समाज और देश को एकता ,बंधुता व मानवता का संदेश दिया है ।
बाबा साहब ने भी हमे 22 प्रतिज्ञाओं के माध्यम से अपने जीवन को सार्थक करने का संदेश दिया है। बाबा साहब ने इतिहास की परतों को उधेड़ कर इस सत्य को उजागर किया कि हमारी धार्मिक व सामाजिक- सांस्कृतिक परंपराएं बौद्धिस्ट रही हैं। और हम इसी साँचे में बेहतर रूप से समायोजित हो सकते हैं। बौद्ध परंपराएं हमारें जन्म, मृत्यु, विवाह और धार्मिक संस्कारो में दृष्टिगोचर हों। यही मेरा अपने समाज को ले कर स्वर्णिम स्वप्न है। 

-किशोर बागेश्वर ,जीराबाद, जिला-धार, मप्र 
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बढ़ती दूरियों को समाप्त करना होगा 



हमें हमारे समाज को गति प्रदान करने के लिए सबसे पहले आर्थिक रुप से पिछड़े परिवारों के बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सहयोग प्रदान करना होगा, सामाजिक गतिविधियां जैसे-परिचय सम्मेलन, सामूहिक विवाह सम्मेलन, समाज में व्याप्त कुरूतियों को मिटाने तथा, समाज के गरीब बच्चों को शिक्षित और काबिल बनाने में हर तरह से सहयोग प्रदान करना होगा।
जैसा कि हम जानते हैं समाज को संगठित करने के लिए परिवार, रिस्तेदार, और आपसी संबंधों की अहम भूमिका होती है। लेकिन आज हम देख रहे हैं कि करीब के संबंधों में सबसे ज्यादा दुरियां बढ़ रही हैं, और ये दुरियां सामाजिक गतिविधियों में कहीं न कहीं विध्न डालने का काम करती है। समाज के बंधुओं से निवेदन है कि हमारे व्यक्तिगत मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा अपना भाई, संबंधी, मित्र समाज के लिए सार्थक पहल कर रहा हो तो हर तरह से सहयोग प्रदान करते हुए उन्हें प्रोत्साहित करें, साथ ही समाज में जो आर्थिक रुप से पिछड़े परिवार है उनको रोजगार के लिए सहयोग प्रदान करते हुए उनके बच्चों को शिक्षित करने में सहयोग प्रदान करना होगा। समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने के लिए सामाजिक गतिविधियां, जैसे-परिचय सम्मेलन सामूहिक विवाह सम्मेलन, समाज के महापुरुषों की जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करना होगा।

-नरेन्द्र कुमार राणे, धामनोद, जिला-धार
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समाज के लोगों की हर तरह से सहायता करें


पिछले सात दशको मे बलाई समाज की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तरक्की की नई ऊंचाइयां छू रही है. ज्यादातर मामलों मे अब उन्हें आरक्षण की जरूरत मालूम नही होती है. आज ओधोगिक शहरों और दूसरे देशो मे समाज की अच्छी खासी आबादी रहती है आज कई बलाई भाइयों ने कारोबार मे भी सिक्का जमाया है ऐसा लगता है की बलाई समाज के एक तबके ने काफ़ी तररकी कर ली है. लेकिन अभी भी ज्यादातर हमारा समाज उसी हालत जिस स्थिति मे वो आज सें एक सदी पहले थे. हमारे समाज में भी एक छोटा तबगा ऐसा तैयार हो गया है जो अमीर है. जिसे इस व्यवस्था का लगातर फायदा हो रहा है.
बाबा साहब नाम से लोकप्रिय भारतीय बहुत विधिवेता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे बाबा साहेब ने कल्पना की थी की आरक्षण की मदद सें आगे बढ़ने वाले लोग अपनी  बिरादरी के लोगो को भी समाज के दबे कुचले वर्ग सें बाहर लाने मे मदद करेंगे.
मगर हुआ ये की तरक्की वाला बलाई समाज का ये तबगा समाज मे भी, सामाजिक तोर पर खुद को ऊँचे दर्जे का समझने लगा है. तरक्की क्षमता लोगो की ये क्रिमिलेयर बाकि बलाई भाइयों को मायूस व लाचार सा बना देती है अतः तरक्कीयकता बलाई भाइयों सें अनुरोध है की दूसरे लोगो को भी समाज के दबे कुचले वर्ग से बाहर लाने को उनकी हिम्मत बने.

-यस्शवी खेडेकर, पिंक फ्लावर कॉलोनी, मनावर, धार
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Dr B. R. Ambedkar



He was born on 14April 1891.he was also known as the father of constitution "life should be great, rather than long " the day is celebrated to promote constitution values among citizens.

The some quotes by Babasaheb Ambedkar

1."they can not make history who forge history.
2.  "Be educated, be organized and be agitate. "
3. I like the religion that teachs liberty, equality and fraternity.
4. "Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence."
5."if you believe in living a respectable life, you believe in self -help which is the best help."
6. " Men are mortal, so are ideas. An idea needs propagation as much as a plant needs watering, otherwise both will  die.

-Khushal Bagle, Manawar, Dist.-Dhar, MP
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बेटी बचाओं..... बेटी पढ़ाओं...


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एक सरकारी सरकारी योजना है. यह योजना समाज में लड़कियों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए है. यह योजना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा22 जनवरी 2015 को पानीपत हरियाणा में शुरू किया गया था. इस योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य लोगों में लड़कियों के प्रति जागरूकता पैदा करना और साथ ही भारतीय समाज में उनकी कल्याण सेवा दक्षता में सुधार करना है. लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उनकी अच्छी शिक्षा प्रदान करना से है. एक लड़की के जन्म के बाद उन्हें शिक्षा सुरक्षा स्वास्थ्य पोषण अधिकार और लड़की की अन्य जरूरतों के संदर्भ में उनको सामना करना पड़ता है. भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की मानसिकता बहुत खराब रही है. यह भेदभाव ज्यादातर गांव में पाया जाता है. प्रारंभ से ही लड़कियों की शिक्षा पर बहुत कम ध्यान दिया जाता था. पहले लड़कियों के माता-पिता को ऐसा लगता था कि बेटियों को पढ़ाने से उन्हें कोई फायदा नहीं क्योंकि बेटी पराया धन होती है उनका सोचना था. कि लड़के तो अपने होते हैं जो बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेंगे जबकि लड़कियां तो दूसरे घर जाकर अपने ससुराल वालों की सेवा करती है.

"  नए बदलते भारत में बदल लो अपनी सोच"
  " बेटियां बनती है सहारा नहीं होती है बोझ "

 बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के आने से लोगों की जागरूकता इस संदर्भ में सुधरने लगी है कि उन्हें समझ आने लगा है कि बेटियों भी हर एक क्षेत्र में उनका नाम रोशन कर सकती है साथ ही इस देश के भविष्य को सही करने में बराबर का योगदान दे सकती है. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का लक्ष्य लड़कियों को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से स्वतंत्र बनाने का है.

पड़ेगी बेटी तभी तो बढ़ेगी बेटी
बेटी भार नहीं है आधार
जीवन में उसका अधिकार
शिक्षा से उसका हथियार
    
बढ़ावो कदम करो स्वीकार
बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं
बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं
" बेटी है तो कल है"

-संजना वर्मा, गुलशन कॉलोनी, मनावर, धार
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सावित्री बाई फुले 


सावित्री बाई ज्योतिराव फुले का जन्म 3जनवरी 1831 को हुआ था. यह भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थी उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री के अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य किया है.

-काजल सोलंकी, भगतसिंग मार्ग, मनावर, धार

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डॉ. भीमराव अम्बेडकर


डॉ. भीमराव अम्बेडकर प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। इनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के एक महार परिवार में हुआ। इनका बचपन ऐसी सामाजिक, आर्थिक दशाओं में बीता जहां दलितों को निम्न स्थान प्राप्त था।
डॉ. अम्बेडकर के मन पर इस छुआछूत का व्यापक असर पड़ा जो बाद में विस्फोटक रूप में सामने आया। महाराजा गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई। इस कारण वे स्कूली शिक्षा समाप्त कर मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज में आ गये।
1927 में डॉ. अम्बेडकर ने बहिष्कृत भारत पाक्षिक समाचार पत्र निकाला। यहीं से उनका प्रखर सामाजिक चिंतन सामाजिक बदलाव के परिप्रेक्ष्य में प्रारम्भ हुआ। 
21 अगस्त 1947 को भारत की संविधान प्रारूप समिति का इन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की संरचना हुई। जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की गयी। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। 
इस कारण उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया।
भीमराव अम्बेडकर ने ब्रिटिश काल में वाईसराय काउंसिल के सदस्य के रूप में श्रमिकों व गरीब लोगों के लिए भी कई श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा योजना भी बनाई जिन पर आज भी काफी जोर दिया जा रहा है।

-सौरभ भंवर, ग्राम-कूवाली,पोस्ट-अजंदा, तह.-मनावर


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