मेरे सपनों का स्वर्णिम मेरा समाज: भाग-6

महिलाओं की आजादी ही मेरा अपने समाज के लिए स्वर्णिम समाज का सपना है


आज आजादी के इतने वर्ष बाद भी हम कहा है, शिक्षा तो समाज के लोगों ने ली है किन्तु इसका प्रयोग समाज की महिलाओ के हित में कहा हुआ.? आजादी आज भी महिलाओं से दूर है, कभी घर की चौखट, कभी ससुराल का आँगन बस इसमें ही रह गई. जब किसी लड़की ने शिक्षित होकर ऊंचा स्थान पाना चाहा तो उसे ससुराल वालों ने आगे न बढ़ने दिया.
हम सती प्रथा, घूंघट प्रथा से आजाद है लेकिन पल्लू प्रथा (सर पर पुल्लू रखना ) से आज भी हम जीत नहीं पाए. देखा जाये तो यह प्रथा भी नगर, ग्रामों में है किन्तु बड़े महानगरों मे नहीं है. इसका तात्पर्य यह है कि यह भी एक रूढ़िवादी परम्परा है. और महिलाएं अपने पहनावे को लेकर आजाद नहीं है. जैसे किसी विष भरे पेड़ के फलों को बार-बार न काटकर उसकी जड़ों को काटने से वह समाप्त होता है, उसी प्रकार यदि आज की युवा पीढ़ी शिक्षित हो और उसका उपयोग सही दिशा में करें तो हमारा समाज सबसे आगे होगा.  
महिला शिक्षित हो यह सब चाहते है लेकिन वह बेटी हो बहु नहीं, और अगर बहु है तो उसके नियम अलग होते है क्यों?
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा है की अगर एक महिला शिक्षित होती है तो वह खुद नहीं बल्कि परिवार एवं सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करती है. बाबा साहेब ने महिलाओं को  समानता का अधिकार दिया है जिससे वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, क्लेक्टर, आदि बन सकती है. लेकिन उसी महिला को हम घर मे पुरुष के बराबर समानता का अधिकार आज भी नहीं दे रहे है क्यों?  यही सामाजिक और मानसिक गुलामी है. जब हम महिला को घर मे समानता का अधिकार नहीं देंगे तो वह समाज को कैसे आगे बढ़ायेगी.? क्योंकि उसके मन में तो एक अबोध गुलामी है, जिसकी जड़ को हमें काटना है और उसे इस गुलामी से आजाद करना है.
शिक्षा के साथ बेटी का सही उम्र में विवाह भी जरूरी है और बढ़ती उम्र से पहले भी क्योंकि एक सही उम्र की महिला स्वस्थ शिशु को जन्म देगी व स्वस्थ समाज का निर्माण करेगी.
यह एक कहानी है उस लडकी की जिसका जन्म 80 के दशक में हुआ. लेकिन उसके पिताजी ने समाज की रूढ़िवादिता को न ध्यान देते हुए उसे शिक्षा के पंख लगाकर उड़ने की आजादी दी. वो बचपन से ही एक होनहार बालिका थी उसका चयन 90 के दशक में ही एक बहुत बड़े विद्यालय में हुआ. जब वह 12 वीं कक्षा में थी उसके पंख को उड़ान देने वाले उसके पिताजी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई. लेकिन इस बार उसकी माँ ने समाज की परवाह किए बिना उसका विवाह न कर उसके सपनों को पूरा किया. जिससे की वह अब एक बड़े पद पर है लेकिन जब उसका विवाह हुआ और वह ससुराल गई तो उसने कभी नहीं सोचा होगा की उसके पंख कुछ रूढ़िवादिता परम्परा से जला दिए जायेंगे. जब उससे यह कहा गया की तुम जमीन पर बैठो हम घरवालों के बराबर बैठने का हक तुम्हें नहीं है. यह सुन कर उस शिक्षित, जो की एक प्रतिष्ठित पद पर है उसका मानसिक संतुलन उसकी भावना कितनी आहत हुई होंगी.?
जिसको यह सम्मान, आरक्षण बाबा साहब ने दिया है उस लड़की की भावनाओं व पंखों को जला दिया गया हो, ऐसे समाज से उस लड़की के मन पर क्या प्रभाव हुआ होगा? वह जज तो बन गई लेकिन अपने ससुराल में कभी समानता अधिकार तो दूर समान बैठने तक का अधिकार नहीं पा सकी.
वह शिक्षित व प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद भी आज भी रूढ़िवादी परंपराओं से लड़ नहीं पाई है. क्या समाज शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए इन रूढ़िवादी परम्परा की जड़ को काट पाएगा या नहीं.?
महिला की आजादी ही मेरा अपने समाज के लिए स्वर्णिम समाज का सपना है.

-डॉ. मोनिका सोलंकी, पिंक फ्लॉवर कॉलोनी, मनावर, धार

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समाज और एक समाज में अंतर है


समाज और एक समाज में अंतर है, एक समाज का अर्थ है अमुक समाज, जबकि संपूर्ण समाज का अर्थ है- मानव समाज या मानव के आपसी संबंध.
कुछ लोग मानव संगठन को ही समाज मान लेते है, जबकि समाज शब्द बहुत व्यापक और अमूर्त है. "यह मानवीय संबंधों का जाल है." समाज विशाल वृक्ष के समान है उसकी शाखाएं अलग-अलग एक समाज का बोध कराती है. जैसे- बलाई समाज, ब्राह्मण समाज, राजपूत समाज आदि-आदि.
यदि हम यह कहते है कि 'मेरे सपनों का स्वर्णिम मेरा समाज' तो इसका तात्पर्य केवल हमारे एक विशिष्ट समाज का बोध होता है. लेकिन जब हम समाज को शिखर तक पहुँचाना चाहते है तो हमें सम्पूर्ण समाज के सभी अंगों में तालमेल करना आवश्यक होगा. नहीं तो हम समाज के अन्य अंगों से सहयोग प्राप्त नहीं कर सकते जिससे परिणाम स्वरूप हम पिछड़ जायेंगे.
डॉ. अंबेडकर का यह कथन - "जब तक वर्ग विहीन समाज की स्थापना नहीं होगी तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं"  इसका तात्पर्य यह है कि जब तक मानव समाज कई वर्गों में बंटा रहेगा तब तक कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता. उन्नति तो सम्पूर्ण समाज में ही संभव है.
इससे स्पष्ट होता है कि हमें अपने समाज को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाना है तो समाज के सभी वर्गों से सहायता लेना आवश्यक है. तब ही हम स्वर्णिम समाज की कल्पना कर सकते है.

-जगदीश सोलंकी, रिटा. सीनियर टी.ओ.ए., शिक्षक कॉलोनी, मनावर, धार 

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महिलाओं के उत्थान के लिए अंबेडकर ने बनाए कई कानून 



आज से करीब 8000 वर्ष पूर्व मातृसत्तात्मक परिवार की परंपरा थी, जिसमें महिलाएं घर बनाना, खेती करना, बर्तन बनाना इत्यादि का कार्य करती थी, तथा उस समय न कोई जाति, धर्म, वर्ण था और नहीं अंधविश्वास, विश्वास था तो सिर्फ विज्ञान पर. किंतु 5000 वर्ष पूर्व आर्यों का देश में प्रवेश हुआ उसके पश्चात महिलाएं शोषित, गुलाम, भोग विलास की वस्तु तथा दासी आदि बन कर रह गई. जिससे वह आर्थिक सामाजिक एवं महत्वपूर्ण शैक्षणिक रूप से कमजोर रह गई. उपरोक्त महिला विरोधी कानून को कोई समाज सुधारक जैसे -राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले ,अकबर आदि ने महिलाओं हेतु समाज सुधार के लिए काम किए इन के पश्चात देश के प्रथम कानून मंत्री डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद पर रहते हुए महिलाओं के उत्थान के लिए निम्नलिखित कानून बनाए -
 1)बाल मजदूर. 2) मतदान अधिकार. 3) समानता का अधिकार. 4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार. 5)गोद लेने का अधिकार. 6) भरण पोषण अधिकार. 7) तलाक अधिकार.  8)अंतर जाति विवाह अधिकार. 9) पैतृक संपत्ति अधिकार आदि,
महिलाओं के लिए इतने नियम कानून बनाने के पश्चात भी आज हमारे देश में अशिक्षित महिलाएं एवं पुरुष बाबा साहेब अंबेडकर को अनसुना अनदेखा करते है. जब तक बाब साहेब की विचार धारा का सम्मान और उस पर अमल नहीं होता है तब तक एक स्वर्णिम समाज की स्थापना करना संभव नजर नहीं आता है.

-डॉ. विशाल साधव, पशुचिकित्सा विस्तार अधिकारी, कालिबावड़ी, धरमपुरी

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जब तक महिलाओं का शोषण एवं अत्याचार होगा.. स्वर्णिम समाज का स्वप्न नामुमकिन 



महिला शोषण एवं अत्याचार यदि वास्तव में समाज में नारी को देवी का स्थान प्राप्त है, तो नारी के प्रति किसी भी प्रकार का अपराध अत्याचार एवं हिंसा नहीं होनी चाहिए, नारी के प्रति दूसरा दृष्टिकोण नारी को समाज में पुरुषों के समान अधिकार दिलाने का विरोधी है इसी कारण नारी को उत्पीड़ित किया जाता है. नारी का शोषण, हिंसा, बलात्कार, ससुराल में प्रताड़ित किया जाता है. पीटा जाता है, दहेज मांगा जाता है ,यहां तक की हत्या तक कर दी जाती है ऐसा है हमारा समाज। नारी जीवन हाय "तुम्हारी यही कहानी आंचल में दूध और आंखों में पानी"  

हमारे देश में सामाजिक कुप्रथाएं -भारत में अनेक कुप्रथाएं प्रचलित है जिनमें बाल विवाह, पर्दा प्रथा, शिक्षा का अभाव इत्यादि। इसलिए महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। भारत में कुछ अधिकार संविधान और कानून के अंतर्गत दिए गए हैं। स्त्री धन का अधिकार, ससुराल में रहने का अधिकार, फाइनेंशियल सपोर्ट का अधिकार, कमिटेड रिलेशनशिप का अधिकार, स्वाभिमान के साथ रहने का अधिकार, स्वतंत्र रहने का अधिकार.

महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं शिक्षाविदों और संस्कार सभी को मिलकर प्रयत्न करना होगा महिलाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के लिए सजग होना पड़ेगा । जब तक महिलाएं अपने ऊपर होने वाले अपराधों को चुपचाप सहन करती रहेगी उन पर अत्याचार होते रहेंगे. जिससे की स्वर्णिम समाज का निर्माण संभव नहीं है.
-पल्लवी सवनेर, भगतसिंग मार्ग, मनावर, धार

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नारी



नारी की एक मुस्कान उसके गमो को भुला देती है,
नारी की कोमलता हर कठोरता को पिघला देती है !

अपने सीने से लगाकर सींचा है, नारी ने हर इंसान को
अपनी उंगलियों के सहारे चलना सिखाया इस संसार को !

इसका एक स्पर्श ममता का एहसास दिला जाता है
नारी के आँचल में सारा संसार समा जाता है !

कभी जनक की जानकी है ये तो कभी राम की सीता,
कभी काली सा क्रोध है, इसमें तो कभी सकुंतला की शीतलता !

मेनका, उर्वशी की सुंदरता भी है
इसमें लक्ष्मीबाई की वीरता भी है !

ये गृहणी बन घर को स्वर्ग बनाती है
सावित्रीबाई फुले बन विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ाती है !

-श्रीमती स्नेहलता सवनेर, ग्राम-बालीपुर, तह.-मनावर, धार

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जात-पात



केवल एक दिन की बात नहीं, हम सदियों से सताये गए.
हमेशा ऊंच नीच जात पात के फंदो में फसाए गए.!
जिसने भी सर उठाने की कोशिश की, वो मारे गए.!
पीटे गए और जिंदगी भर रुलाये गए.!


मेरे इस दामन को जरा गौर से देखो यारों इसमें भी
छुआ-छुत के दाग लगाए गये, ये में नहीं कहती
सब लोग जानते है की जिनका हो गया बेजान जिस्म
ओ नफ़रत के आग से ही जलाये गये.!

हमें पाप-पुण्य की दरिया में, कुदाया गया 
हमेशा स्वर्ग नर्क का पाठ पढ़ाया गया 
ये में नहीं कहती वो लोग कहते है, की गंगा मे नहाने से,
पाप धूल जाते है तो फिर क्यों छुआ-छुत का दाग लगाया गया.!

-करीना सवनेर, ग्राम-बालीपुर, तह.-मनावर, धार

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हमारे समाज को शराब मुक्त समाज बनाना होगा


समाज के हित के लिए मेरे मेरे विचार से सबसे पहले तो समाज में जो लोग भी शराब पीते है उन्हें शराब छोड़ कर अपने आप को बदलने की कोशिश करनी होंगी क्योंकि शराब पीने से घर में झगड़ा होता है औरत और बच्चे परेशान होते हैं, और जब कोई उन्हें अच्छी बात कहता है तो उसे वह गलत लगती है. शराब के नशे में व्यक्ति गाली गलौज से बात करता है. मैंने यहां तक देखा है कि किसी के घर कार्यक्रम में जाते हैं तो वह वहां पर भी उस कार्यक्रम को बिगाड़ने की कोशिश करता है. इसलिए हमारे समाज को शराब मुक्त समाज बनाना होगा.

-तनवी कोटे, कक्षा-7वीं, ग्राम-मलनगांव, तेह.-मनावर, धार

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कोरोना वायरस पर बाल कविता


मिलकर कोरोना को हराना है, 
मिलकर कोरोना को हराना  है, 
घर से हमें कहीं नहीं जाना है, 
हाथ किसी से नहीं मिला है,  
चेहरे को हाथ नहीं लगाना है,

मिलकर कोरोना को हराना है,
मिलकर कोरोना को हराना है, 
बा -बार अच्छे से हाथ धोने जाना है.

सैनिटाइजर का उपयोग करके देश को स्वच्छ बनाना है,
बचाव ही इलाज है,
यह समझाना है,
मिलकर करोना को हराना है,
मिलकर कोरोना को हराना है.

कोरोना से हमको नहीं घबराना है, 
सावधानी रखकर कोरोना को मिटाना है, 
देश हित में सभी को यह कदम उठाना है, 
मिलकर करोना को हराना है 
मिलकर करोना  को हराना है.

 -उदीप्ता परमार, उम्र-8 वर्ष, अलीराजपुर, मप्र

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कोरोना काल की शिक्षा 


कोरोना काल की शिक्षा 
टीचर का खाली ब्लेकबोर्ड, 
कम ज्ञान का खजाना हुआ 

अब है मोबाइल का जमाना 
मिल जाते है मोबाइल पर ही गुरु जी 
कहते वही से करो तुम, पढ़ाई शुरू जी
अब मोबाइल में टीचर, 
टीचर को मोबाइल में देखते सारे स्टूडेंट करने लगे स्माइल.

बच्चे अब कर लेते है, वही से आज्ञा का पालन 
पढ़ाई के नाम पर होता गेम का संचालन 
ऑनलाइन पढ़ाई से मम्मी पाप भी खुश नहीं 
क्योंकि उन्हें पता है वही से लूडो खेल रहा है उनका दुष्ट

अब टीचर की डांट से भी बच्चे होते बड़े प्रसन्न 
क्योंकि टीचर को चुप करने का उनके पास है बटन 
टीचर मोबइल से थोड़ा ही पढ़ाएंगे,  नहीं तो बंद करके भाग जायेंगे
अब खुश की बच्चे कुछ कर दिखाएंगे.

भूमि सोनवे, उम्र- 7 वर्ष, पिंक फ्लॉवर कॉलोनी, मनावर, धार

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कक्षा- 5वीं के नन्हें  प्रतिभावान छात्र दर्श वर्मा, पंचवटी कॉलोनी, मनावर, धार ने अपनी पेंटिंग के माध्यम से वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से बचाव का संदेश दिया है. एक और जहां पढ़े लिखे लोग कोरोना को हल्के में लेकर लापरवाहियां कर रहे है जिसके परिणाम स्वरूप कोविड-19 महामारी  देश में भयंकर तरीके से फैली है. वहीं हमारे समाज के नन्हें बालक ने इसकी भयावकता को समझा है और इससे सुरक्षा और बचाव का संदेश समाजजन को दिया है. 

-दर्श वर्मा, पंचवटी कॉलोनी, मनावर, धार

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हमारे देश भारत का नक्शा एवं हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज की अतिसुन्दर पेंटिंग हरीश गोविन्द सोलंकी, मनावर, धार, मप्र द्वारा बनाकर प्रेषित कि गई है.

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बुद्ध लीला की अतिसुन्दर पेंटिंग नकुल जीतेन्द्र सोलंकी, भगतसिंग मार्ग, मनावर, धार, मप्र द्वारा बनाकर प्रेषित कि गई है.
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ताजमहल


आगरा के ताजमहल का सुन्दर स्केच निशा सोलंकी, भगतसिंग मार्ग, मनावर, धार, मप्र द्वारा बनाकर प्रेषित कि गई है.

-निशा सोलंकी, भगतसिंग मार्ग, मनावर

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डॉ. भीमराव अम्बेडकर




भारत को संविधान देने वाले महान डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को  मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. अपने माता पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अंबेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे. उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की महू छावनी में सेवा में थे. भीमराव को बचपन के दौरान जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा. हाई स्कूल से 1908 मैं मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की 1908 मैं अंबेडकर को एलेन क्रिश्चियन कॉलेज में अध्ययन करने का अवसर मिला. उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए न्यूयॉर्क शहर में के कोलंबिया विश्वविद्यालय को नामांकित किया.

-पुष्पराज सोलंकी, उम्र-10 वर्ष, गुलशन कॉलोनी, मनावर

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भावेश राजू सोलंकी, उम्र-10 वर्ष, मनावर जिला-धार, मप्र ने सराहनीय पेंटिंग बनायी है.

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