महिलाएं मानसिक तौर पर आजाद हो कर काम करे: सोना खांडे, कालीबावड़ी, मप्र

 


मेरे सपनों का स्वर्णिम मेरा समाज की मेरी परिकल्पना तभी सिद्ध हो सकती है जब हमारे समाज की महिलाओं को मानसिक आजादी मिले. अपने घर परिवार व आसपास महिलाओं की आजादी के बारे में हमने क्या  सोचा और अब तक क्या किया है? वैसे महिलाएं क्या नहीं कर सकती, हमने पूर्व के समय में देखा है कि महिलाओं ने अनेक वीरता के काम किए हैं और यह सिद्ध किया है कि नारी सबला भी है यह सिद्ध किया है. हमारे देश की महिलाओं में झांसी की रानी, झलकारी बाई एवं अन्य कई  वीरांगना रही है.  किन्तु  कुछ नारी शक्ति स्वयं अपने आप को समाज के प्रति जागृत नहीं कर रही है. यदि वह सोच ले कि मुझे समाज के लिए कुछ करना है तो वह निश्चित ही यह कर सकती है. महिलाओं को पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं से बाहर निकालने की आवश्यकता है क्योंकि आज भी हमारे समाज की महिलाएं अन्य व्यर्थ के कामों में उलझी है जिनका जीवन में कोई औचित्य नहीं है. हमारा समाज पढ़ा-लिखा होने के बाद भी आज छोटी-छोटी बातों में उलझा रहता है. और इसके जिम्मेदार वह पढ़े लिखे शिक्षित लोग हैं जो सब कुछ जान कर भी समाज को गुमराह कर रहे हैं. कुछ समझदार कहते तो है की महिलाओं को आगे आना चाहिए लेकिन मेरे घर से नहीं इसी कारण हमारा समाज पीछे हैं. हम समाज के लिए जब चलने लगेगे जब समाज बैठेगा हम समाज के लिए जब दौड़ने लगेंगे जब समाज हमारे पीछे चलेगा और हम समाज के लिए तेज भागेंगे तब समाज हमारे पीछे दौड़ने लगेगा. आज नारी शक्ति को भी अपने घर परिवार से ऊपर उठकर समाज के बारे में सोचना पड़ेगा तभी स्वर्णिम समाज बन सकेगा.

-सोना खांडे, कालीबावड़ी, धरमपुरी, धार, मप्र
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