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अगस्त 2013 में एक स्तनधारी जीव ओलिंगुइटो (Bassaricyon neblina) की खोज हुई. 21 वीं शताब्दी में स्तनपाई जीवों की कोई नई प्रजाति मिलना एक दुर्लभ घटना है. अमरीका के वैज्ञानिकों को कोलंबिया और इक्वाडोर के घने जंगलों में एक नया स्तनपाई जीव मिला जिसका नाम ओलिंगुइटो रखा गया है. पिछले कई सालों में पहली बार मांसाहारी जीव की कोई प्रजाति अमरीकी महाद्वीप में खोजी गई है. इसका श्रेय स्मिथसोनिअन इंस्टिट्यूट को जाता है. इसकी खोज क्रिस्टोफ़र हेल्गन, प्राकृतिक विज्ञान का उत्तरी केरोलिना संग्रहालय के ओलिंगो विशेषज्ञ रोलैण्ड केज़ और सहयोगियों ने संयुक्त रूप से की है.
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इस खोज से पहले भी ओलिंगीटुओं को कई बार देखा गया था, परन्तु यह एक अन्य प्रजाति के सदस्य है इसका पता बाद में इसकी खोज से चला. इसे इसी के समान दिखने वाले ओलिंगो का ही संबंधी माना जाता रहा था.
दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने लुप्त हो चुके बिना पैरों वाले उभयचर के पूरे परिवार को भी खोजा है. वैज्ञानिकों ने पूर्वोत्तर भारत के जंगलों की गीली मिट्टी से केसिलियंस की खोज की है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सत्यभामा दास बीजू और उनकी टीम ने उभयचर परिवार की खोज के बाद उसे चिकिलिडे नाम दिया है. लंदन की रॉयल सोसायटी पत्रिका ने इस खोज को प्रकाशित किया. इससे इस बात का भी सबूत मिलता है कि भारत उभयचरों की प्रजातियों का बड़ा केंद्र है. पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले लोगों के बीच इस दुर्लभ जीव के बारे में तरह तरह की भ्रांतियां हैं. वे इसे जहरीला सांप समझकर मार भी देते हैं. जबकि यह किसानों का सबसे अच्छा दोस्त है.
बीजू के अनुसार "डीएनए परीक्षण से पता चलता है कि चिकिलिडे की प्रजाति के जीव अफ्रीका में भी थे. लाखों वर्ष पहले हुए परिवर्तन के बाद यह प्रजाति अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, दक्षिण अमेरिका और भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंचे.
इसी तरह हाल ही में भारत के चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक गोवा के पश्चिमी घाट पर वैज्ञानिकों ने भारतीय मुरैनग्रास की एक नई प्रजाति की पहचान की है. यह पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्णमानी जाती है. इन प्रजातियों ने जटिल परिस्थितियों, कम पोषक तत्व की उपलब्धता, और हर मानसून में खिलने के लिए यह अनुकूलित है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्थान, पुणे स्थित अगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई), पिछले कुछ दशकों से पश्चिमी घाट की जैव विविधता की खोज कर रहा है. टीम ने गोवा के पश्चिमी घाट के इस्किमम जंर्थनमीफिरोम प्लैटियस नामक एक विशेष प्रजाति की खोज की, और इस प्रजाति का वर्णन करने वाला एक शोध पत्र हाल ही में फिनलैंड के जर्नल एनलिस बोटनिसीफेनिकी में प्रकाशित हुआ.
गोवा के पश्चिमी घाट में खोज के दौरान एआरआई की टीम ने प्रजातियों के एक नमूनें की पहचान की जो चट्टानों पर मिट्टी की पतली परत के ऊपर फैला हुआ मिला. काफी परख और अध्ययन के पाया गया कि यह विशेष प्रजातियों में से एक है. इस नई प्रजाति को पहली बार 2017 के मानसून में संग्रहित किया गया था. इसकी स्थिरता की पुष्टि करने के लिए इसे अगले दो वर्षों तक निगरानी में रखा गया था.
वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार दुनिया में जीव जंतुओं की लगभग 87 लाख प्रजातियां हैं लेकिन इनमें से कई प्रजातियों की पहचान अब तक नहीं हो सकी है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए पेड़ पौधों की पत्तियों और शाखाओं का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला की सभी जीव प्रजातियों की पहचान करने में कम से कम एक हजार साल और लगेंगे. शोध जर्नल पीएलओएस बायोलॉजी में वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी भी दी गई है की यदि शेष प्रजातियों की खोज शीघ्र नहीं की गई तो इनमें से कई प्रजातियां जल्दी ही लुप्त हो जाएंगी. शोध के अनुसार 87 लाख जीव जंतुओं में बड़ी आबादी जानवरों की है. हालांकि इनमें बैक्टीरिया और कुछ अन्य सूक्ष्म जीवों को शामिल नहीं किया गया है. शोधकर्ताओं ने समुद्र की प्रजातियों के संबंध में अनुमान लगाया है कि समुद्र में लगभग 10 लाख प्रजातियां पाई जाती है, इनमें से अभी तक केवल दो लाख छब्बीस हजार प्रजातियों की ही खोज की गई है. अथार्थ सभी समुद्री प्रजातियों का दो-तिहाई हिस्सा अभी भी विज्ञान के लिए अज्ञात है.
निष्कर्षतः कहा जा सकता है की वैज्ञानिकों द्वारा अब तक पृथ्वी पर कुछ ही जीव सूचीबद्ध हुए है. डॉक्टर हेल्गन ने ओलिंगुइटो की पूर्व में पहचान नहीं होने पर कहा था, " यह हमें याद दिलाता है कि अभी तक दुनिया को पूरी तरह जाना नहीं गया है और खोज का दौर ख़त्म नहीं हुआ है. ओलिंगुइटो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है, " और क्या बचा है ?"
-सुदर्शन सोलंकी, विज्ञान लेखक व ब्लॉगर
क्या अद्भुत संसार है जीव जंतु पेड़ पौधों का
ReplyDeleteवाजिब चिंता की खोज से पहले ही विलुप्त न हो जाए
हां.. मेम.. क्योंकि.. प्रदुषण.. ग्लोबल वार्मिंग.. जलवायु परिवर्तन इत्यादि से जीवों की कई प्रजातियां तेजी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही है... हम खोजी हुई प्रजातियों को भी सुरक्षित और संरक्षित नहीं कर पा रहें है.. तो अज्ञात की ओर कैसे ध्यान देंगे... यह सब जैव विविधता, पर्यावरण और हमारे लिए गंभीर चिंताजनक है...
Deleteसही कहा
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