लघुकथा- मेधा जीजी
एक रेस्तरा में उसे बैरा का काम मिल गया। ऊपर से टिप्स भी मिलतीबसंत खुश हैं। मैट्रिक परीक्षा में फेल हो जाने के कारण उसका दिल टूट गया था। फिर परीक्षा में न बैठा और वाराणासी आ गया। बसंत समझ नहीं पा रहा था। इस नये रिश्ते को क्या नाम दे सब उसे "बैरा" कहकर बुलाते थे। मगर वह हमेशा उसे भैय्या कहती थी। उसकी आँखो में कितना गहरा अनुराग था। "मेधा" का सौम्य स्वरूप उसकी आँखो में बस गया था। उसका निष्कपट पवित्र हृदय बसंत का मन भावातिरेक से भर उठा आँखो से आँसु छलक पड़े। वह बुदबुदाया जीजी, मेधा जीजी, तुम मेरी मेधा जीजी हो। मेधा काशी हिन्दूविश्वविधालय में हिंदी की प्राध्यापक थी। कई उच्च कोटि की पुस्तके उसने लिखी थी। जब वह रेस्त्रां में आती तो बसंत बड़ी दीनता से अपनी लिखी छोटी छोटी कविताएं उसे दिखाता। मेधा बडे हर्ष से उनको पढती और ममत्व भरी दृष्टि से बसंत को देखती थी। आज बसंत की विचित्र अवस्था है। कभी कभी उसे उन्मादपूर्ण हर्ष होता हैं, तो कभी अपनी दीनता पर,अपनी अवस्था पर स्वयं पर आन्तरिक दृष्टि डालने पर घबराहट होती थी।आज मेधा की पुस्तक "प्रेम की पीर" का विमोचन समारोह हो रहा हैं।विद्वान लेखक शायर बेकल उत्साही राज्यसभा सदस्य, मुख्य अतिथि हैं। कभी कभी इरादा करता समारोह में न जाऊगा। परन्तु फिर सोचता, मेधा जीजी क्या सोचेगी।
मेरी जीजी हैं वह। मैं मेधा जीजी के पुस्तक समारोह में जरुर जाऊगा। मेधा जीजी मुझे बुलाएगी।मन अपने वश में न था सत्कल्पनाऐ हृदय में तैर रही थी। उपहार देने के लिए वह एक डायरी और पेन बाजार से सुबह ही खरीद लाया था। और उस पर मोटे मोटे अक्षर से लिख दिया था मेधा जीजी। सोचता था मेरी मेधा जीजी का फोन आऐगा। वो मुझे बुलाऐगी। मेरा उपहार पाकर मुझसे स्नेह करेगी दोपहर हो गई, फिर संध्या हुई पर किसी का फोन न आया। बसंत का हृदय व्याकुल हैं। अब रोने की क्षमता न रह गई थी पर हृदय अभी हार न मानता था। सोचता थामेरी मेधा जीजी का फोन आऐगा।
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