नशा मुक्ति दिवस (26 जून) विशेष

 शराबी



ऐ कलम अब थाम मुझे

कदम मेरा लड़खडा़ रहा

कहां गया अस्तित्व मेरा

अन्तर्मन मुझे डरा रहा।


मादकता भरी इस बोतल ने

खींचकर ले आई मुझे यहां

पथ भूलकर भटक चुका हूं

पता नहीं मुझे जाना कहां।


भरी है यह शराब से

नस नस में भर दी मद नशा

हुआ दीवाना ऐसा इसका

बदल गयी जीवन की दशा।


चम्मच भर चखकर हो आसक्त

शराब संग दिल जुड़ गया

हाय!अंग अंग हो अधीन इसके

मदनशा से घिर गया।


कब सुबह कब शाम ढली

अब रात न है कोई  निराली

पीता हूं बस दिन रात मैं

सोम रस यह भर भर प्याली।


सिमट गया बोतल के अन्दर

नहीं मेरा कोई अपना

बिस्तर बना जहां मेरा

नशा केवल मेरा सपना।


हो शक्तिहीन मैं तलाश रहा

दो राहों पर हूं खडा़

मदिरा मुझे सुला रही

मौत दे रही है पहरा।


अश्रु भर भर नैन मेरे

सहस्त्रधार बहा रहा

बिवस हूं मैं वो शराबी

चाहकर भी न लौट रहा

चाहकर भी न लौट रहा।

-इंदिरा कुमारी, नोएडा सेक्टर 53


Comments

Post a Comment

hey, don't forget to follow me.
feel free to give suggestions and ideas for my next article.