कलुषित हृदय- इंदिरा कुमारी
देख हत्या सिर कलम
द्रवित हृदय सदा रोएगा
ऐ कलम वो शब्द बहा दो
है क्रुरता की यह हद असीम
वो कब तक कहर मचाएगा
हथियार मुझे अब वो थमा दो
कि अपराधी थर थर कांपेगा।
सत्य अहिंसा हथियार संग
तलवार क्या टकराएगा
वो अदृश्य शक्ति हुंकार भर दो
कि वो आत्मबल से हारेगा।
यह पंचतत्व से बना शरीर
अधिकार कौन जमाएगा
तथ्य संग ललकार भर दो
कि वो दुस्साहस कर नहीं पाएगा।
क्षमा ,दया,तप,त्याग बिना
मानव जो संसार बसाएगा
उसे संसार जंगल का दिखा दो
कि वो खूंखार पशु संग जाएगा
वो खूंखार पशु संग जाएगा।
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