दिव्य दर्शन- इंदिरा कुमारी
कर आवाज बुलंद जय माता दी
करूं शब्द से कुछ वर्णन
धन्य हुई मैं देख उन्हें
हुआ मुझे वो दिव्य दर्शन।
सौभाग्य वो त्रिकूट पर्वत का
स्वयं माता उसपर विराजती
पिंडी रूप वो भगवती का
चहुंओर वेदध्वनि गूंजती।
सूर्य,चन्द्रमा,ग्रह,नक्षत्र
पर्वत को यूं निहारता
अदभुत दृश्य प्रकृति का
माता का कदम वो चूमता।
पैदल,पालकी,घोटक संग
भक्तजन ऐसे निकल पडे़
दर्शन बिना न चैन उन्हें
वो अपनी आन पर अडे़ रहे।
माता की कृपा बरसती उनपर
तय किये वो जोजन दूरी
स्नान ध्यान औपचारिक नियम
करते श्रद्धा संग वो पूरी।
अब होता दिव्य दर्शन माता का
देख मन न थिर रहे
हर्षित नयन से रुक न सके
अश्रु उससे छलक रहे।
धन्य हैं वो तीन देवियां
महासरस्वती,लक्ष्मी,काली
शत् शत् नमन उन पिंडी को
हैं वो सत्य शक्तिशाली!
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