मन का मनोबल: करिश्मा परदेशी, महू, मप्र
बहुत पुराने समय की बात है एक फकीर था. जो एक गांव में रहता था एक दिन शाम के वक्त वह अपने दरवाजे पर बैठा था तभी उसने देखा कि एक छाया वहां से गुजर रही है. फकीर ने उसे रोककर पूछा कौन हो तुम छाया ने उत्तर दिया मैं मौत हूँ और गांव जा रही हूं. क्योंकि गांव में एक महामारी आने वाली है छाया के इस उतर से फकीर उदास हो गया और पूछा कितने लोगों को मरना होगा इस महामारी में मौत ने कहा बस हजार लोग इतना कहकर मौत गांव में प्रवेश कर गयी महीने भर के भीतर उस गांव में महामारी फैली और लगभग तीस हजार लोग मारे गए फकीर बहुत क्षुब्ध हुआ और क्रोधित भी. पहले तो केवल इंसान धोखा देते थे अब मौत भी धोखा देने लगी फकीर मौत के वापस लौट ने की राह देखने लगा ताकि वह उससे पूध सके की उसने उसे धोखा क्यों। दिया कुछ समय बाद मौत वापस जा रही थी तो फकीर ने उसे रोक लिया और कहा अब तो तुम भी धौखा देने लगी हो तुम ने तो बस हजार के मरने की बात कही थी लेकिन तुमने तीस हजार लोगों को मार दिया इसपर मौत ने जो जवाब दिया वो गौरतलब है मौत ने कहा मैंने तो बस हजार ही मारे है बाकी के लोग (उनतीस हजार) तो भय से मर गए उनसे मेरा कोई संबंध नहीं है यह कहानी मनुष्य मन का शाश्वत रूप प्रस्तुत करती है मनोवैज्ञानिक रूप मानव मन पर मौत से कहीं अधिक गहरा प्रभाव भय डालता है भय कहीं बाहर से नहीं आता बल्कि यह भीतर ही विकसित हो या है भयभीत व्यक्ति न तो किन्हीं बाहर परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर सकता है और न ही अपनी मन स्थिति पर उस गांव में उनतीस हजार लोग महामारी से नहीं बल्कि भय से मर गए क्योंकि उनका मनोबल गिर गया था इसलिए मनोबल हमेशा ऊंचा रखें परिस्थिति चाहे जो भी हो.
-करिश्मा परदेशी, महू, इंदौर, मप्र
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Thank You 💐🙏
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